रेशम उत्पादन का तराई में बढ़ेगा दायरा
सीमांत व मध्यम किसानों को खेती के लिए विभाग करेगा प्रेरित 309 किसानों को जोड़ने के लिए रेशम विभाग ने बनाई कार्ययोजना 60-60 किसान 05 ब्लाकों से किए जाएंगे चयनित
बहराइच : हिमालय की तलहटी में रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने की कार्ययोजना बनाई गई है। रेशम विभाग ने इसके लिए 309 किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है। एक एकड़ भूमि में करीब पांच हजार पौधे जुलाई से लगाए जाएंगे।
अभी तक जिले के आठ राजकीय रेशम फार्म के माध्यम से करीब पांच हजार किसान शहतूत की खेती से जुड़े हैं। खेती का दायरा बढ़ाने के लिए रेशम विभाग ने नई कार्ययोजना बनाई है। इसके तहत ब्लाक चित्तौरा, तेजवापुर, महसी, बलहा व मिहींपुरवा के किसानों को शहतूत की खेती के लिए प्रेरित किया जाएगा।
सहायक निदेशक रेशम एसबी सिंह ने बताया कि निजी क्षेत्र में शहतूत की खेती करने वाले किसानों की संख्या कम है। इसे देखते हुए हर ब्लाक से 60-60 किसानों को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। एक एकड़ भूमि पर खेती के लिए पांच हजार पौधे किसानों को निश्शुल्क दिए जाएंगे। अगर एक किसान बेहतर ढंग से देखभाल करता है, तो उसे एक हजार रेशम कीट के माध्यम से तीन सौ किलोग्राम कोया मिलेगा। इससे उसकी आय करीब सवा लाख रुपये तक हो जाएगी।
यह होता है सही मौसम
रेशम के कीट के कोया बनाने के लिए अधिक गर्मी और अधिक ठंडक नुकसानदायक होती है। इसलिए अगस्त से नवंबर और फरवरी से अप्रैल तक का समय उपयुक्त होता है। इसमें कीट कोया बनाने का काम बेहतर ढंग से करते हैं।
प्रशिक्षण भी देंगे
सहायक निदेशक ने बताया कि अच्छी खेती करने वाले 30 किसानों को राज्य स्तरीय प्रशिक्षण के लिए मिर्जापुर भेजा जाएगा। इसी तरह खेती के प्रति जागरूक होने वाले पांच किसानों को बेंगलुरु में राष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण दिया जाएगा। कोट
किसानों के खेतों में पौधे जुलाई में लगा दिए जाएंगे। पांच माह बाद इसका सर्वे किया जाएगा। पौधों की पत्तियों की गुणवत्ता को परखने के बाद किसानों को कोया उत्पादन के लिए कीट प्रदान किए जाएंगे।
- एसबी सिंह, सहायक निदेशक, रेशम