जरायम के लिए उठे हाथ, अब पर्यावरण संरक्षण का कर रहे काम
लॉकडाउन में जब घरों में रहे कैद तब बंदियों ने कारागार की खाली जमीन को दिया उपवन का स्वरूप
प्रदीप तिवारी, बहराइच : कल तक जरायम के लिए जो हाथ उठते थे, आज उस हाथ को हर कोई सलाम कर रहा है। यह हाथ उन बंदियों का है जो हत्या, डकैती जैसे गंभीर अपराधों में जेल की सलाखों में पहुंच गए हैं। लॉकडाउन में जब चार माह जिदगियां घरों में कैद रही तो जरायम के लिए उठने वाले बंदियों के यही हाथों ने जिला कारागार में खाली पड़ी जमीन को उपवन स्वरूप देने में लगे रहे। अब यही उपवन पर्यावरण संदेश देने के साथ ही कोरोना के संक्रमण से बचाने व इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बंदियों के योग व प्राणायाम का स्थल बन गया है।
जिला कारागार में 13 बैरकों में लगभग 1300 हत्या, तस्करी, डकैती समेत गंभीर अपराधों में निरुद्ध हैं। वैश्विक महामारी के दौरान दुर्दांत अपराधों के लिए जाने जाने वाले बंदियों ने न सिर्फ अपनी सोच बदली, बल्कि इम्युनिटी को बढ़ाने व पर्यावरण संरक्षण को लेकर जेल प्रशासन की ओर से की गई पहल के सारथी बने। चार माह में बैरकों के बाहर वीरान पड़ी जमीन पर अपनी मेहनत व पसीने से उपवन का रूप दे दिया। आठ अहातों के सामने मखमली घास के चारों तरफ रंग-बिरंगे खिले फूल सिर्फ जेल कर्मियों को ही बरबस नहीं आकर्षित करते, बल्कि कोरोना काल में बंदी शारीरिक दूरी का पालन कर इसे प्राणायाम के रूप में प्रयोग करते हैं। डिप्टी जेलर शरेंदु त्रिपाठी बताते हैं कि इस पहल से बंदियों में सकारात्मक सोच पैदी हुई है। वे खुद इस उपवन में लगे फूल को सहेजने में खाली वक्त बिताते हैं। डिप्टी जेलर अखिलेश कुमार बताते हैं कि 'यूं तो जिनको मुकम्मल जिदगी हासिल है वह किसी न किसी बहाने जी लेते हैं, लेकिन जो किस्मत के हाथों मजबूर हैं, उनको उनकी मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश करना ही हमारा दायित्व है।'
-----------
उपवन दे रहे पर्यावरण का संदेश
जेल अधीक्षक एएन त्रिपाठी बताते हैं कि सुबह आंख खुली तो खिले फूलों के बीच प्राणायाम की गूंज से जेल का माहौल बदला है। उपवन में खिल रहे फूल सिर्फ आकर्षण का केंद्र नहीं, बल्कि पर्यावरण का संदेश भी दे रहे हैं।