अपनों के इंतजार में बंदियों की पथरा रहीं आंखें
बहराइच : जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों के चेहरे पर झुर्रियां, लड़खड़ाते कदम व कमजोर
बहराइच : जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों के चेहरे पर झुर्रियां, लड़खड़ाते कदम व कमजोर शरीर उम्र के आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ने की कहानी कह रही हैं। प्रतिदिन इन बंदियों को अपनों के आने की आस भले ही रहती हो, लेकिन हकीकत में अब उनकी आंखें अपनों को देखने के लिए तरस रही हैं। कारागार में निरुद्ध इन बंदियों की खोज-खबर तक लेने कोई नहीं आ रहा है। कुछ से तो अपनों ने मुंह फेर लिया और कुछ गरीबी के चलते जुर्माना न जमा करने की वजह से निरुद्ध हैं। कारागार प्रशासन भले ही इनका विशेष ख्याल रख रहा हो, लेकिन अपनों के मुंह फेरने की टीस कहीं न कहीं इन्हें जरूर बेचैन कर रही है।
सिद्धार्थ नगर जिले के झबुरवा थाना क्षेत्र के बैरहवा निवासी नगदहे (87) पुत्र जुकई एनडीपीएस एक्ट में 10 साल की सजा काट रहे हैं। चलने फिरने मे असमर्थ और कमजोर आंखों के बावजूद वह अपनों की राह निहारते हुए कारागार में आठ साल गुजार चुके हैं। इन गुजरे वर्षों में उनसे परिवार का कोई भी सदस्य मिलने नहीं आया। इस बात को सोच कर उनकी आंखें भर आती हैं। यही हाल सुशीला निवासी शोहरतगढ़ जिला सिद्धार्थनगर का भी है तस्करों के जाल में फंसकर ¨जदगी जेल में बिता रही हैं। आठ साल हो गए हैं। जेल में इनसे मिलने कोई परिवारीजन नहीं आया है। सुशीला व नगदहे ही नहीं। श्रावस्ती जिले के इकौना तिलकपुर निवासी रफीक (90) पुत्र सुबराती, अमजद(86), फेरन(86), समयदीन(87), नीबर(70), नसीर (74), बच्चू (75), छोटे लाल (70), अमजद, रफीक, सुबराती, गया प्रसाद, पंचम, ओम प्रकाश, चेतराम, बच्चा, सुशीला, छेदी समेत तकरीबन 80 ऐसे बुजुर्ग हैं जो हत्या व अन्य आपराधिक मामलों में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। इन कैदियों का कहना है कि परिवार के लोगों का न मिलना जेल की सजा से भी बढ़कर सजा है।
जिला कारागार में निरुद्ध सभी बंदियों का ध्यान दिया जा रहा है। कारागार में तैनात चिकित्सक द्वारा समय-समय पर उनका चिकित्सकीय परीक्षण कराने के साथ उन्हें दी जाने वाली डाइट को भी परखा जा रहा है। यही नहीं, इन्हें किसी भी चीज की आवश्यकता पड़ने पर नियमानुसार सभी चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं। वीके शुक्ला, प्रभारी जेल अधीक्षक
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