ग्राम चौपाल से जग रही लक्ष्मी के वाहन के संरक्षण की अलख
-नेपाल में दी जाती है उल्लू की बलि शिकार रोकने के लिए वन विभाग सतर्क
प्रदीप तिवारी, बहराइच : भारतीय संस्कृति में शुभता व मां लक्ष्मी के वाहन के प्रतीक उल्लू को तराई के जंगल की आबोहवा भा रही है। पक्षी प्रेमी जंगल से सटे गांवों में चौपाल लगा संरक्षण की अलख जगा रहे हैं। यह मुहिम रंग ला रही है। यहां विभिन्न प्रजातियों के उल्लुओं की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। नेपाल में दीपावली पर उल्लू के बलि की प्रथा को देखते हुए एसएसबी के समन्वय से वन विभाग टास्क फोर्स गठित कर तस्करों पर कड़ी नजर रख रहा है।
हिमालय की तलहटी में उल्लू के प्रवास की मुख्य वजह उनके भोजन माकूल बंदोबस्त है। यहां तीन प्रजातियां पाई जा रही हैं, इनमें सामान्य, ह्वाइट आउल व फिश आउल। इनके संरक्षण को लेकर कतर्नियाघाट फ्रेंड्स क्लब एक साल से जागरूकता अभियान चला रहा है। जंगल से सटे 25 गांवों में चौपाल लगाकर उल्लू के बलि के प्रति फैले अंधविश्वास को दूर कर रहा है। क्लब अध्यक्ष भगवानदास लखमानी बताते हैं कि इसका असर हुआ है और तस्करी में कमी आई है।
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चार से 10 हजार में होती है बिक्री
-एसओएस टाइगर्स एसोसिएशन के हरि पांडेय बताते हैं कि अंध विश्वास के चलते नेपाल में अमावस की रात लक्ष्मी के वाहन उल्लू की बलि की कुप्रथा नेपाल में है। चीन में इसका उपयोग विभिन्न शोधों में किया जाता है। लिहाजा उल्लू की डिमांड दीपावली पर नेपाल में घर-घर रहती है। इस दिन चार से लेकर 10 हजार रुपये तक की कीमत में उल्लू की बिक्री होती है।
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उल्लू की तस्करी रोकने के लिए टीम गठित की गई है। अभियान चलाया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर शिकार करने वालों लोगों को भी चिह्नित किया जा रहा है।
-मनीष कुमार सिंह, डीएफओ बहराइच