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ओडीएफ हुए गांव, खुले में लोग जा रहे शौच

यहां न सोच बदल सकी न शौचालय की स्थिति ओडीएफ गांव की दिखी उल्टी तस्वीर चित्र परिचय 0

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 11:45 PM (IST)Updated: Mon, 19 Aug 2019 06:28 AM (IST)
ओडीएफ हुए गांव, खुले में लोग जा रहे शौच
ओडीएफ हुए गांव, खुले में लोग जा रहे शौच

प्रदीप तिवारी/रामानंद मिश्र, बहराइच : मैं ग्राम पंचायत फखरपुर हूं। मैं खुले में शौच मुक्त हो गया हूं। मेरे पंचायत में जानवरों के अतिरिक्त सभी लोग शौचालय का प्रयोग करते हैं। कूड़े में पड़े खुले में शौचमुक्त का संदेश देने वाला बोर्ड सिर्फ फखरपुर ही नहीं कागजों में घोषित हो चुके 86 ग्राम पंचायतों की हकीकत को उजागर कर रहा है। शौचालय अधूरे पड़े हैं, जो बन भी गए व निष्प्रयोज्य होकर बदहाल हो चुके हैं। लिहाजा पीठ थपथपाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने कोरम पूरा करने पर जोर लगाया, धरातल पर न सोच बदली न व्यवस्था और न ही शौचालयों की स्थिति।

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जिला मुख्यालय से फखरपुर ब्लॉक की दूरी महज 15 किमी है। बहराइच- लखनऊ हाईवे फखरपुर को दो हिस्सों में बांटता है। ब्लॉक की 86 ग्राम पंचायतों में लगभग साढ़े तीन लाख की आबादी निवास करती है। वर्ष 2011 के बेसलाइन सर्वे के मुताबिक 2014 से 2019 तक यानी पांच सालों में 28000 परिवारों को शौचालय की सौगात दी गई है। विभाग के ओडीएफ के दावों का सच जानने के लिए दूर मत जाइए फखरपुर गांव पर नजर डालिए तो तस्वीर उलटी है। लगभग तीन हजार की आबादी वाले गांव में अधिकांश परिवारों को शौचालय मिला नहीं, जिन्हें मिला अधूरा पड़ा है, जिनका बन चुका, उनका गड्ढा ही पट चुका है। ब्लॉक मुख्यालय के इस गांव की बहू-बेटियां आज भी खुले में शौच को जाती हैं। इसी से अन्य पंचायतों के ओडीएफ के दावों का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

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पैइसवा लैइगे, शौचालय नाइ बनवाइन

बंभौरा गांव के त्रिवेनी उन लोगों में से हैं, जिनका परिवार खुले में शौच को विवश है। वे बताते हैं कि पैइसवा लैइ लिहिन, शौचालय नाइ बनवाइन। फोटो- त्रिवेनी 34

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मुझे बताया अपात्र

कोदही गांव निवासी वसीम शौचालय के लाभ से वंचित हो गए। वे बताते हैं कि कई बार दौड़ लगाया,लेकिन हर बार अधिकारी अपात्र कहकर उन्हें टरका दिए।

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सिर्फ पीटा गया ढिढोरा

अंगनापारा निवासी जयकरन बताते हैं कि हर घर को शौचालय की सौगात का सिर्फ ढिढ़ोरा पीटा गया है। वे भी सरकारी व्यवस्था के चलते शौचालय से वंचित कर दिए गए।

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सिर्फ आंकड़ों का खेल

घासीपुर के असलम बताते हैं कि सबसे पहले उनका गांव ओडीएफ घोषित किया गया। कुछ लोगों को ही शौचालय का लाभ मिला। आनन-फानन में बनवाए गए शौचालय एक माह में ही निष्प्रयोज्य हो गए।


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