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सफेद दूध का काला धंधा नहीं हो रहा मंदा

बहराइच : तराई में सफेद दूध का काला धंधा बंद नहीं हो रहा है। इसका खुलासा जांच में फेल ह

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 12:06 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 12:06 AM (IST)
सफेद दूध का काला धंधा नहीं हो रहा मंदा
सफेद दूध का काला धंधा नहीं हो रहा मंदा

बहराइच : तराई में सफेद दूध का काला धंधा बंद नहीं हो रहा है। इसका खुलासा जांच में फेल हुए दूध के तीन नमूनों से हुआ है। इनमें जरूरी वसा व अन्य तत्व ही नहीं मिले, यानी दूध के नाम पर पानी मिला। सफेद दूध के इस काले कारोबार में सिर्फ दुधिया ही नहीं मुनाफाखोरी के लिए क्रीम का खेल कर रहे, बल्कि शुद्धता की गारंटी देने वाली डेयरियां भी मानकों को दर किनार कर मालामाल हो रही हैं।

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यहां हर रोज 3000 लीटर से अधिक दूध की खपत है। त्योहार के मौसम में दूध की खपत दोगुने से भी अधिक हो जाती है, जबकि उत्पादन स्थिर होता है। ऐसे में जरूरत को पूरा करने के लिए मिलावट का खेल होता है। इसका फायदा फुटकर व दूधिया तो उठाते हैं। जिस दूध को अच्छा समझकर उपभोक्ता खरीद रहे हैं, उनमें फैट (वसा) एसएनएफ (सॉलिड नॉट फैट) यानी ठोस तत्व नहीं मिला। वसा का मानक स्तर

भैंस के दूध में पांच से नौ फीसदी, गाय के दूध में तीन से पांच फीसदी तक वसा होना चाहिए, जबकि ठोस तत्व की मात्रा भैंस में नौ फीसद से अधिक व गाय में आठ फीसदी से अधिक तक होना चाहिए। हो सकता पांच लाख तक जुर्माना

खाद्य विभाग के अभिहीत अधिकारी कौशलेंद्र शर्मा बताते हैं कि तराई में क्रीम निकालने का खेल हो रहा है। इससे उपभोक्ताओं को आर्थिक क्षति होती है। जिस पर पांच लाख रुपये तक जुर्माना का प्रावधान किया गया है। तीन नमूने फेल हुए हैं। न्याय निर्णायक अधिकारी के पटल पर मामला रखा जा रहा है। निर्णय कारोबारी के हैसियत के आधार पर होती है।


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