मक्के की खेती को कृषि वैज्ञानिक ने दिया नया आयाम
जासं, बहराइच : फसल अनुसंधान केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक रहे डॉ. एमवी ¨सह शनिवार को सेवाि
जासं, बहराइच : फसल अनुसंधान केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक रहे डॉ. एमवी ¨सह शनिवार को सेवानिवृत हो गए। 30 साल के शोध कॅरियर में उन्होंने मक्का व जूट की कई उपयोगी प्रजातियों को विकसित किया। तराई में मक्का की सहफसली खेती को तीनों सीजनों में कराने में उनका योगदान रहा, जिसके चलते बहराइच मक्का उत्पादन में प्रदेश में पहले पायदान पर पहुंचा है। चाहे फसलों की क्षतिपूर्ति हो या फिर नवीन तकनीक के जरिए खेती कराने के गुर सिखाना, वे हमेशा किसानों के प्रति समर्पित रहे।
नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज फैजाबाद में डॉ. महेंद्र विक्रम ¨सह की दो फरवरी वर्ष 1988 को वैज्ञानिक के पद पर तैनाती हुई। विश्वविद्यालय में लगभग दस वर्ष तक शोध में लगे रहे। जुलाई 1998 में फसल अनुसंधान केंद्र बहराइच में उनकी तैनाती की गई। तराई की जलवायु को देखते हुए जूट व मक्का पर उन्होंने अपना शोध शुरू किया। लगभग तीन साल शोध में जूट व मक्का की कई नई प्रजातियों को विकसित किया। इनमें एनडीसी 2008, 2011, 2013 व 2028 प्रजाति ने तराई के किसानों की तरक्की के राह को आसान किया। पिछले तीन सालों से बहराइच के किसान मक्का उत्पादन का प्रथम पुरस्कार हासिल कर नाम रोशन कर रहे हैं। इस उपलब्धि का श्रेय डॉ. ¨सह को ही किसान देते हैं। प्रगतिशील किसान रामकेवल गुप्ता कहते हैं की उनके संरक्षण में तराई के किसान नवीन तकनीक से लैस हुए हैं। शनिवार को 30 साल चार माह के कार्यकाल के बाद वे पदमुक्त हुए तो किसान भी भावुक रहे।