शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे डॉ.जितेंद्र
बहराइच : डॉ.जितेंद्र चतुर्वेदी का जाना-पहचाना नाम है। उन्हें सीआइडी के सामाजिक वीरता पुर
बहराइच : डॉ.जितेंद्र चतुर्वेदी का जाना-पहचाना नाम है। उन्हें सीआइडी के सामाजिक वीरता पुरस्कार और आइआइएम बंगलुरू की ओर से खड़मुगम मंजूनाथन पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। वे शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद कर लोगों के प्रिय बन गए हैं। लोगों को उनका अधिकार दिलाने की मुहिम चला रहे हैं।
वन ग्राम वासियों से लेकर आमजनमानस के अधिकारों की लड़ाई लगातार लड़ते हुए वे समाज में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। वनग्राम वासियों के आधारभूत संवैधानिक अधिकारों के संघर्ष को लेकर 13 वर्ष पूर्व सामाजिक संगठन देहात का गठन किया। उन्होंने वन ग्रामवासियों को उनका अधिकार दिलाने का संकल्प लिया और इसके लिए आंदोलन शुरू किया। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित अति पिछड़े बहराइच जिले में मिहीपुरवा ब्लॉक सबसे पिछड़ा इलाका माना जाता है। इसका अधिकतम भू-भाग घने जंगलों से ढका हुआ हैं। इन जंगलों के बीच आठ गांव बसे हैं, जिन्हें वनग्राम कहा जाता हैं। इसमें भवानीपुर, बिछिया गांव, बिछिया बाजार, महबूब नगर, गोकुलपुर, कैलाशनगर, नई बस्ती व निषाद नगर शामिल हैं। इन गांवों में कुल 991 परिवार हैं, जिनकी जनसंख्या तकरीबन 4998 है। वर्ष 1865 में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार जंगलों को विकसित करने के लिए वन प्रबंधन प्रणाली लागू किया, क्योंकि सरकार को रेल लाइन बिछाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी। उप्र पंचायती राज अधिनियम 1995 के तहत ये आठों गांव किसी भी गांव/क्षेत्र पंचायत/जिला पंचायत के क्षेत्र में नहीं आते थे। इन लोगों का नाम परिवार रजिस्टर के भाग-दो में कहीं भी दर्ज नहीं था, जो कि किसी के पहचान के लिए अति आवश्यक दस्तावेज है। वनग्राम वासियों को सरकार द्वारा किसी प्रकार का निवास, जाति, व आय प्रमाण पत्र जारी नही किया जाता था। वर्ष 1999-2000 में इन्हें अतिक्रमणकारी घोषित कर दिया गया। मई 2004 को वन विभाग ने इन वनग्रामों को बिना किसी पुनर्वास की व्यवस्था के उजाड़ने का ऐलान कर दिया। वनग्राम वासियों के आधारभूत संवैधानिक अधिकारों के संघर्ष को लेकर 13 वर्ष पूर्व देहात संस्था के बैनर तले डॉ.जितेंद्र ने आंदोलन शुरू किया। परिणामस्वरूप परंपरागत वननिवासी और अनुसूचित जाति (वनकानूनों की मान्यता )अधिनियम 2007 के तहत गोकुलपुर वनग्राम को पहली बार राजस्व गांव का दर्जा दिया गया। 15 अप्रैल 2010 को तत्कालीन डीएम रिग्जियान सैंफिल द्वारा ग्रामीणों को भूमि के मालिकाना हक का प्रमाण पत्र दे दिया गया। इसके अलावा जितेंद्र सीमावर्ती गांवों में मानव तस्करी व बालश्रम रोकने के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं।