नेपाल सीमा तक फैला पालीथिन का अवैध कारोबार
बहराइच बाजारों में पालीथिन की खेप पड़ोसी जिलों, महानगरों समेत अन्य स्थानों से आती है। कानपुर की फैक्ट्रियों से पालीथिन की खेप आने की सूचना है। इसके बावजूद प्रशासन इसे रोकने में पूरी तरह से नाकाम है। छोटी दुकानों व ठेले वालों तक आसानी से इसे बेच कर व्यापारी मालामाल हो रहे हैं।
जिले में भारी मात्रा में पालीथिन पहुंचाने में प्रशासन की मौन स्वीकृति से इन्कार नहीं किया जा सकता है। एक जुलाई से प्रतिबंध का कोई असर नहीं दिख रहा है। कानपुर और दिल्ली से लखीमपुर के रास्ते बड़ी मात्रा में पालीथिन की खेप आती है। पालिका प्रशासन इसे रोकने को कोई प्रभावी रणनीति भी नहीं बना पा रहा है। सरकार की रोक के बाद व्यापारियों ने भी बड़े पैमाने पर पालीथिन को स्टाक कर लिया। अब इसे दोगुणे दामों पर बेचा जा रहा है। पालिका की टीम भी धर-पकड़ के दौरान छोटे दुकानदारों को ही दबोच पा रही है।
19 आइटम किए गए प्रतिबंधित
प्लास्टिक की डंडियों वाले ईयर बड, बैलून स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, लालीपाप की डंडी, आइस्क्रीम की डंडी, थर्माकोल के सजावटी सामान, प्लेट्स, कप, गिलास, कांटे-चम्मच, चाकू, स्ट्रा, ट्रे, मिठाई के डिब्बे पर लगने वाली पन्नी, निमंत्रण पत्र, सिगरेट पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक और पीवीसी बैनर।
कैंसर रोगी बना रही पालीथिन
जिला क्षय रोग चिकित्साधिकारी डा. पीके वर्मा का कहना है कि पालीथिन कैंसर जनित रोगों का कारक है। यह सिंथेटिक मोम को चिकना करके बनाया जाता है। इसके संपर्क में आने से पेट में विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैलती हैं। इससे आंत, लिवर व गुर्दा भी खराब हो जाते हैं। इसे जलाने से सांस की बीमारी बढ़ती है। लोगों में अस्थमा पनपने का यह प्रमुख कारण है। इसलिए पालीथिन व डिस्पोजल का उपयोग नहीं करना चाहिए। विकल्प के रूप में कपड़े, जूट व पटसन के थैला का इस्तेमाल करना चाहिए।