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जलवायु परिवर्तन ने छीना कतर्निया का कलरव

बहराइच तराई में पक्षियों की लगभग 450 प्रजातियां पाई जाती हैं। 551 वर्ग किमी में फैले कतर्नि

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 11:36 PM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 11:36 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन ने छीना कतर्निया का कलरव
जलवायु परिवर्तन ने छीना कतर्निया का कलरव

बहराइच : तराई में पक्षियों की लगभग 450 प्रजातियां पाई जाती हैं। 551 वर्ग किमी में फैले कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार में इन प्रजातियों में से करीब डेढ़ सौ प्रकार के पक्षी रूस, चीन, यूरोप, तिब्बत व हिमालय के बर्फीले इलाकों से नवंबर माह में ही यहां सर्दियां बिताने के लिए आते हैं। जाड़ा बिताने के बाद फरवरी या मार्च के पहले सप्ताह में विदा होते थे, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते बिगड़ते पर्यावरण से इस वर्ष विदेशी मेहमानों को कतर्निया की आबोहवा रास नहीं आई। दिसंबर में पहुंचे विदेशी मेहमान फरवरी के पहले सप्ताह में डैम, सरोवर, नदियों व झीलों को छोड़कर विदा हो गए।

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मौसम की दगाबाजी प्रवासी पक्षियों पर भारी पड़ रहा है। नवंबर से ही झुंड के झुंड डेरा जमाकर ठंडी का चौमासा बिताने वाले साइबेरियन पक्षियों के लिए कतर्निया वन्यजीव विहार रास नहीं आया। इसके पीछे वातावरण में हो रहा बदलाव माना जाता है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि कतर्निया ही नहीं, बल्कि तराई में मेहमान पक्षी समय से पहले ही वतन को वापस हो रहे हैं। कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार साइबेरियन पक्षियों का सबसे बड़ा प्राकृतिक प्रवास है। यहां खास कलरव करने वाले टिनटेल पक्षियों के झुंड शाम के समय जंगल के वातावरण को खास तरह की आवाज से गुंजरित करते रहते। पक्षी विशेषज्ञ व कतर्नियाघाट फ्रेंड्स क्लब के अध्यक्ष भगवानदास लखमानी बताते हैं कि यहां पर शिवहंस, सुर्खाब, लालसर, नीलसर, जल कौआ, ब्लैकनेक स्टार्क, आइविश स्टार्कस, गूज, सीखपर, मुर्गाबी, दाविल, नकटा, बेखुर बतख, पिटारी बतख, जलसीपी जैसे पक्षी नवंबर माह में पहुंच जाते थे और मार्च तक कतर्निया के मझरा डैम, महादेवा तालाब और गेरुआ में विचरण करते रहते। बघैल तालाब व सीताद्वार झील में भी इन पक्षियों का प्रवास होता रहता है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते प्रवासी पक्षी दस्तक देकर वापस होने लगे हैं। मौसम वैज्ञानिक डॉ.एमवी ¨सह बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग का असर इन पक्षियों पर भी पड़ता है। वे बताते हैं कि अनुकूल मौसम न मिलने से वे वापस चले जाएंगे। डीएफओ जीपी ¨सह भी इस बात से सहमत हैं कि पक्षियों के सीमित ठहराव की सबसे बड़ी वजह मौसम की स्थिति है। इन पक्षियों को जितनी अधिक ठंड की जरूरत है, अगर वह स्थिति नहीं बन पाती है तो नहीं रुकते हैं।


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