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मां तुझे सलाम.. बेटियों की खातिर पति से की राह जुदा

मां का त्याग और संघर्ष क्या है? यह इंद्रा देवी से जानिए..जिन्होंने बेटियों की खातिर पति से राह जुदा कर ससुराल छोड़ी और दशकों संघर्ष कर मां होने का फर्ज निभाने की अनूठी मिसाल पेश की। भूखी रहकर अपना करियर संवारा और बेटियों को कामयाब कर समाज में अपना लोहा मनवाया। तीन बेटियों में एक टीचर तो दूसरी मल्टीनेशनल कपंनी में एयरोनॉटिकल इंजीनियर है। वहीं तीसरी बेटी एमबीबीएस की पढ़ाई में जुटी है ताकि मां का सपना पूरा करने को डाक्टर बनकर समाज की सेवा कर सके।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 11:59 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 11:59 PM (IST)
मां तुझे सलाम.. बेटियों की खातिर पति से की राह जुदा
मां तुझे सलाम.. बेटियों की खातिर पति से की राह जुदा

जहीर हसन, बागपत : मां का त्याग और संघर्ष क्या है? यह इंद्रा देवी से जानिए.. जिन्होंने बेटियों की खातिर पति से राह जुदा कर ससुराल छोड़ी और दशकों संघर्ष कर मां होने का फर्ज निभाने की अनूठी मिसाल पेश की। भूखी रहकर अपना करियर संवारा और बेटियों को कामयाब कर समाज में अपना लोहा मनवाया। तीन बेटियों में एक टीचर तो दूसरी मल्टीनेशनल कपंनी में एयरोनॉटिकल इंजीनियर। तीसरी बेटी एमबीबीएस की पढ़ाई में जुटी है, ताकि डाक्टर बन मां का सपना पूरा कर सके।

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56 साल की इंद्रा देवी का मायका बागपत का रमाला गांव है। साल 1984 में उनकी शादी बड़ौत के एक गांव में हुई। वह इंटर और बीटीसी है। वे बतातीं हैं कि बड़ी बेटी ने जन्म लिया। पति से खर्च नहीं मिलने पर 105 रुपये माह पारिश्रमिक पर अनौपचारिक शिक्षा की अनुदेशक बनकर खर्च चलाया। दूसरी बेटी के जन्म के बाद तो खर्च बढ़ गया, लेकिन पति से मदद न मिलने पर बड़ौत के किसी स्कूल में टीचर बनकर हजार रुपये महीना कमाकर उनका लालन-पालन करने लगीं। तीसरी बेटी ने जन्म लेने पर तो जैसे पति समेत सुसरालियों पर कोई पहाड़ टूट गया।

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निभाया मां का फर्ज

--पति तंज कसने लगे कि बेटियों का क्या? ये पराए घर का धन है। इनकी पढ़ाई-लिखाई पर खर्च करने की जरुरत नहीं है। रोज कलह रहतीं, लेकिन साल 1998 में इंद्रा देवी की जिला महाराजगंज के परिषदीय स्कूल में अध्यापिका पद पर नियुक्ति मिल गई। कुछ माह बाद बागपत में ट्रांसफर करा लिया, लेकिन पति दबाव बनाने लगे कि बेटियों पर खर्च करने के बजाय पूरा वेतन उनके हवाले कीजिए। बात इतनी बढ़ी कि साल 2001 में वह पति का घर छोड़ अलग रहने लगी।

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और संघर्ष लाया रंग

-पति की बातों पर ध्यान देने के बजाय इंद्रा ने किराए पर मकान लेकर खुद को संभाला। बेटियां पढ़ाने में जुट गईं। बड़ी बेटी प्रियंका को एमएससी स्टेटिक व एमफिल स्टेटिक तक पढ़ाकर शामली के परिषदीय स्कूल में टीचर बनाईं है। दूसरी बेटी विभा मल्टीनेशनल कंपनी में एयरोनॉटिकल इंजीनियर की हैसियत से पायलेट को हवाई जहाज के इंजन की ट्रेनिग देकर बदले में मोटा वेतन पाती है। तीसरी बेटी नेहा लखनऊ के प्रतिष्ठित कालेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहीं है।

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मां अब फल खाने का वक्त

-इंद्रा देवी बतातीं है कि वह बड़ौत ब्लाक के एक उच्च प्राथमिक स्कूल में हेडमास्टर थीं। दोनों बेटियों ने दबाव बनाया कि मां अब नौकरी करने के दिन नहीं, बल्कि जो पेड़ आपने लगाये हैं उनके फल खाने का वक्त है। बेटियों की जिद्द के आगे साल 2018 में ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर बड़ी बेटी प्रियंका पंवार के पास शामली में जाकर रहने लगी। बोलीं कि जितना ख्याल बेटी रखतीं है और मान सम्मान मिलता है उतना बेटों से शायद नहीं मिलता। बेटियों और बेटों में भेदभाव कतई नहीं करना चाहिए और मां भी भ्रूण हत्या कराकर बेटियों की कातिल न बनें।

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