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कवियों की महफिल में वाहवाही लूटेंगे बंदी

वो भी क्या नजारा होगा जब कवियों की महफिल सजेगी और नामचीन कवियों के बीच जेल की अंधेरी कोठरियों की तन्हाई में बैठे बंदी भी वाहवाही लूटेंगे। जी हां बागपत जेल के दो बंदी अब कविता की रचना करने लगे हैं। रक्तरंजित हाथों ने अब कलम को थाम लिया है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Nov 2019 07:40 PM (IST)Updated: Thu, 21 Nov 2019 07:40 PM (IST)
कवियों की महफिल में वाहवाही लूटेंगे बंदी
कवियों की महफिल में वाहवाही लूटेंगे बंदी

भूपेन्द्र शर्मा, बागपत, जेएनएन :

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वो भी क्या नजारा होगा, जब कवियों की महफिल सजेगी और नामचीन कवियों के बीच जेल की अंधेरी कोठरियों की तन्हाई में बैठे बंदी भी वाहवाही लूटेंगे। जी हां, बागपत जेल के दो बंदी अब कविता रचने लगे हैं। रक्तरंजित हाथों ने अब कलम थाम ली है। इन बंदियों की कविताओं को एक कविता संग्रह 'मेरी महफिल में प्रकाशित किया जाएगा।

पूर्वांचल के डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद से बागपत जेल बदनाम हो गई थी। इस बदनामी का दाग मिटाने के लिए जेल में बंद बंदियों व कैदियों को खेलकूद, शिक्षा व सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि लेने की मुहिम शुरू की गई है। इसके जरिए बंदियों को जरायम की दुनिया से विमुख किया जा रहा है। जेल सुधारक के रूप में पिछले 12 वर्षों से सक्रिय एटा निवासी प्रदीप रघुनंदन के प्रयास से जिला कारागार में बंदियों में रचनात्मक कार्यों के प्रति रूझान पैदा किया जा रहा है। बंदियों में एक सकारात्मक सोच विकसित करने की पहल रंग लाने लगी है। जेल में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे रमाला निवासी जगसोरन व दहेज हत्या के मामले में जेल में बंद सूजरा निवासी संजीव कुमार ने कविता लेखन शुरू किया। अब इन दोनों बंदियों की कविताओं का प्रकाशन कविता संग्रह मेरी महफिल नामक पुस्तक में किया जाएगा। इस पुस्तक का विमोचन शीघ्र किया जाएगा।

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इन्होंने कहा कि

जेल में रचनात्मक कार्यों के जरिए बंदियों में सकारात्मक सोच का विकास किया जा रहा है, जिससे वे जेल से बाहर निकलने पर खुशहाल जिदगी जी सकें। पिछले दिनों जेल में आए जेल सुधारक प्रदीप रघुनंदन की प्रेरणा से दो बंदियों में कविता लिखने में रुचि पैदा हुई है। अब उनके द्वारा बंदियों की कविताओं का प्रकाशन होगा, जो एक अच्छा प्रयास है।

सुरेश कुमार सिंह, जेल अधीक्षक

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कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता। वह या तो परिस्थितिवश या किसी साजिश के तहत अपराधी हो जाता है। इन व्यक्तियों में सुधार की गुंजाइश होती है। कविता, निबंध लेखन के अलावा अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए बंदियों में रचनात्मक बदलाव लाया जा रहा है। इससे बंदी समाज की मुख्य धारा में जुड़कर नई जिदगी शुरू कर सकते हैं। इसलिए बंदियों की कविता व निबंध संग्रह का प्रकाशन करते है। साथ ही अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रतिभाग करने के लिए बंदियों को प्रेरित करते है।

प्रदीप रघुनंदन, जेल सुधारक।

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भूपेन्द्र शर्मा


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