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Year Ender 2019: अर्थव्यवस्था की सुस्ती से बागपत में सालभर हांफता रहा रियल एस्टेट

Year Ender 2019 बागपत में इस साल सरकार ने रियल एस्टेट सेक्टर को राहत देने के लिए कई उपाय भी किए गए मगर आर्थिक सुस्ती के कारण रियल एस्टेट की बिक्री परवान नहीं चढ़ सकी।

By Taruna TayalEdited By: Published: Sun, 29 Dec 2019 01:29 PM (IST)Updated: Sun, 29 Dec 2019 01:29 PM (IST)
Year Ender 2019: अर्थव्यवस्था की सुस्ती से बागपत में सालभर हांफता रहा रियल एस्टेट
Year Ender 2019: अर्थव्यवस्था की सुस्ती से बागपत में सालभर हांफता रहा रियल एस्टेट

बागपत, [नवीन चिकारा]। अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह से 2019 में कारोबार-इंडस्ट्री से जुड़े कई सेक्टरों की हालत खस्ता ही रही। उद्योग-धंधों के साथ-साथ रियल एस्टेट सालभर हांफता रहा। रियल एस्टेट सेक्टर वैसे तो पिछले कई साल से मुश्किल के दौर से गुजर रहा है, लेकिन इस साल भी यह संकट के बादलों से पार नहीं पा सका। इससे जहां डेवलपर परेशान रहे वहीं उपभोक्ताओं की मकान खरीदने में कोई रुचि न होने के कारण पूर्व में फंसे प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाए।

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इस साल सरकार ने रियल एस्टेट सेक्टर को राहत देने के लिए कई उपाय भी किए गए मगर आर्थिक सुस्ती के कारण रियल एस्टेट की बिक्री परवान नहीं चढ़ सकी। लोगों के पास न तो ज्यादा इनकम है और न ही भविष्य के बारे में निश्चिंतता, इसलिए लोग मकान खरीदने का निर्णय नहीं ले पाए। इसके अलावा जानकारों का यह भी कहना है कि यह सेक्टर अभी तक नोटबंदी के झटके से उबर नहीं पाया है। खपत में कमी, निवेश के अभाव और आर्थिक मंदी से वृद्धि की संभावनाओं को नुकसान हुआ। सरकार ने इस साल संघर्ष कर रहे ऑटोमोबाइल, रीयल एस्टेट और रिटेल इंडस्ट्रीज को रिवाइव करने के लिए कई कदम उठाए। हालांकि, इन कदमों के बावजूद उत्साहजनक परिणाम सामने नहीं आए। दरअसल, बाकी मामलों के अलावा इन उद्योग-धंधों को नोटबंदी और जीएसटी का ऐसा झटका लगा कि सारा खेल बिगड़ गया। अब हालांकि कई कारोबारियों के मुताबिक, नोटबंदी का असर तो घटने लगा है पर जीएसटी का दर्द अभी बाकी है। फिर से खड़े होने के लिए माकूल माहौल और सरकारी मदद या कर्ज की बेहद जरूरत है, लेकिन कर्ज मिलने के दायरे भी सिकुड़ते जा रहे हैं। डूबे कर्ज से त्रस्त बैंक खासकर छोटे धंधों को कर्ज देने में भारी कंजूसी बरत रहे हैं।

सिमट रहा है उद्योग

जनपद में सबसे बड़ा हैंडलूम उद्योग है, जो निरपुड़ा से लेकर खेकड़ा तक फैला हुआ है। डेढ़ दशक पूर्व इस उद्योग का सालाना टर्न ओवर लगभग चार सौ करोड़ रुपये तक होता था, जो अब घटकर लगभग दो सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इससे राजस्व की हिस्सेदारी में भी बड़ी कटौती हुई है। हैंडलूम और निरपुड़ा का कंबल उद्योग तो अब अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहा है। यदि यही हाल रहा तो वह समय दूर नहीं, जब आने वाले कुछ सालों में बागपत से उद्योग दूसरे स्थानों पर स्थापित हो जांएगे। जिला उद्योग के आंकड़ों पर गौर करें तो जनपद में पंजीकृत कारखानों की संख्या 3100 के आसपास थी, जिनमें 10 हजार से ज्यादा कर्मचारी काम करते थे। लेकिन अब इनमें 28 सौ कारखाने बंद हो चुके हैं। जनपद में अब छोटी-बड़ी इकाइयां लगभग 300 ही बची हैं। इनमें से खेकड़ा के हैंडलूम की छोटी-बड़ी इकाइयां लगभग 100 रह गई हैं। बड़ौत में कृषि यंत्रों की छोटी-बड़ी 255 इकाईयां में से 90 इकाइयां रह गई हैं।

सुविधा नहीं आश्वासन मिलते हैं

सुविधाओं की बात करें तो जनपद में उद्योगों का विस्तार कने के लिए आश्वासन तो समय-समय पर मिलते रहे हैं, लेकिन धरातल पर काम कभी होता नहीं दिखाई दिया। औद्योगिक विकास के लिए कलक्ट्रेट से सटी यूपीएसआईडीसी की भूमि पर उद्योग लगाने की भरसक कोशिश की गई और उद्योग स्थापित हुए भी, लेकिन उतने नहीं जितने लगने चाहिए थे। यहां लगे उद्योगों को भी उतनी सुविधा नहीं मिल रही है, जितनी उद्यमियों की मांग होती है। उद्यमियों का कहना है कि मंदी, असुरक्षा, बदहाल ट्रांसपोर्ट व्यवस्था, विद्युत पेयजल, बैंक आदि की सुविधाएं न मिलन पाने के कारण काई उद्यमी यहां कारोबार स्थापित करने को तैयार ही नहीं होता। उद्योग धंधों का ज्यादा विस्तार रहे, इसके लिए कई साल पहले हथकरघा मंत्रालय, दिल्ली को ढाई करोड़ से ज्यादा रुपये का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया था, लेकिन प्रस्ताव की फाइल पर अमल नहीं हो सका। उद्यमियों को अपने वाहनों से ही दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान आदि से कच्चा माल लाना पड़ता है।

मांगों को नहीं किया जा रहा पूरा

औद्योगिक विकास के लिए समय-समय पर बैंकर्स की बैठक भी होती रही, जिसमें उद्यमियों के अलावा पुलिस-प्रशासन और दूसरे विभागों के अधिकारी भी शामिल रहे। उद्यमियों ने ऋण, विद्युत पानी निकासी, सड़क सुरक्षा आदि की समस्याएं उठाई तो संबंधित विभाग के अधिकारियों ने समस्याओं के समाधान का आश्वासन दिया, लेकिन उद्यमियों की मांग केवल आश्वासनों तक ही सिमट कर रह गई। उद्यमियों की सालों से यह शिकायत रही है कि अफसर उनकी मांगों को पूरा नहीं करते। बागपत में ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे का निर्माण होने के बाद वाहन फर्राटा भरने लगे हैं। बागपत की अब दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों से दूरी कम रह गई है। उधर, दिल्ली-सहारनपुर हाईवे का निर्माण अब अंतिम चरणों में है और गढ़-मेरठ-बागपत-सोनीपत हाईवे का निर्माण भी जल्द शुरू होने के आसार है। इस तरह बागपत से होकर एक एक्सप्रेस-वे और दो हाईवे का निर्माण हो जाने के बाद जिला दूसरे राज्यों से सीधा जुड़ जाएगा और उद्यमियों को अपना माल लाने और ले जाने में काफी सुविधा होगी। इसके अलावा वर्ष 2020 में उम्मीद कि दिल्ली-सहारनपुर हाईवे और गढ़-मेरठ-बागपत-सोनीपत हाईवे का निर्माण होने से व्यापार की स्थिति सुधरेगी। चार दर्जन से ज्यादा लघु उद्योग भी खुलने की उम्मीद है, जिससे बेरोजगार युवा वर्ग को अपने ही जनपद में काम मिलेगा।

रियल एस्टेट के लिए नरम गुजरा साल

रियल स्टेट के लिए साल ज्यादा अच्छा नहीं रहा है। हालांकि गत साल के मुकाबले जमीन व आवासीय प्लाटों की खरीद-फरोख्त में थोड़ा इजाफा तो हुआ। रियल एस्टेट में बूम नहीं आने की मार उससे जुड़े कारोबार जैसे ईंट-भट्टे, सीमेंट, लोहा और अन्य निर्माण सामग्री जैसे व्यापार पर भी पड़ी है। रोजगार सृजन भी कम हुआ है। रियल एस्टेट के खड़ा नहीं होने से ट्रांसपोर्ट का पहिया भी नहीं घूमा है। दिल्ली से सटे बागपत में 2016 तक रियल एस्टेट की अच्छी चमक थी। यहां जमीन के दाम आसमान छूने लगे थे। श्रमिकों को भी अच्छा रोजगार और किसानों को जमीन का अच्छा दाम मिल रहा था। पर नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद धड़ाम हुआ रियल एस्टेट साल 2019 में भी ठीक से उबर नहीं पाया। सबसे ज्यादा दिक्कत उन कारोबारियों को हुई, जिनका जमीन खरीद में मोटा पैसा पंसा हुआ था। इन्हें अब मुनाफा तो दूर मूलधन निकालना भी मुश्किल हो चुका है।

5879 प्रोपटी के बैनामे

बड़ौत तहसील में साल 2018-19 में जहां 10055 बैनामे हुए वहीं 2019-20 में नवंबर माह तक 11328 प्रापर्टी की रजिस्ट्रियां हुईं। इस प्रकार पिछले साल की अपेक्षा 1273 प्रॉपर्टियों की ज्यादा खरीद-फरोख्त की गई। इनमें कृषि भूमि के 1511, प्लाटों के 1449 तथा मकानों के 580 बैनामे प्राप्त हुए। इस बार वार्षिक लक्ष्य 53 करोड़ के सापेक्ष वार्षिक प्राप्ति 29.34 करोड़ ही हो सकी, जबकि गत वर्ष वार्षिक आय 26 करोड़ के आसपास थी। हालांकि यह वृद्धि मामूली ही कही जाएगी।

फंसे हैं अरबों रुपये

नोटबंदी से पहले खेकड़ा, बागपत, बड़ौत में रियल एस्टेट कारोबारियों का अरबों रुपये फंसा है। खेकड़ा में फ्लैट बने खड़े हैं तो बड़ौत, बागपत में दर्जनों कालोनी में प्लाट बिकने का इंतजार है। अग्रवाल मंडी टटीरी, अमीनगर सराय, छपरौली, टीकरी और दोघट कस्बों में भी प्लाङ्क्षटग और मकानों की खरीद-फरोख्त ठहरी हुई है। कई प्रापर्टी डीलरों ने बताया कि जमीन खरीदने को किसानों को सालों पहले जो एडवांस रुपये दिए गए, वह अब वापस नहीं आएंगे। किसानों से बात करते हैं तो उनका सीधा जवाब होता है कि बाकी पैसा दो और जमीन का बैनामा कराओ। दो प्रापर्टी डीलरों ने कहा कि जमीन में जो पैसा इनवेस्ट किया था। उसे चुकाने के लिए अपनी पैतृक जमीन तक बेचनी पड़ी। यदि बूम आता तो हम बर्बादी से बच जाते।

आवासीय कालोनियों पर ब्रेक

बागपत-खेकड़ा-बड़ौत विकास प्राधिकरण तथा आवास विकास परिषद या किसी अन्य सरकारी संस्थाओं निजी बिल्डरों ने बागपत नजपद में न कोई बड़ी नई कालोनी विकसित की और न नए मकान बनवाए। दिल्ली समेत संपूर्ण एनसीआर में रियल एस्टेट में बूम नहीं आने के कारण बागपत में 550 ईंट भ_ा कोरोबारियों को मोटा घाटा है। ईंट भट्टे नहीं चलने से करीब एक लाख मजबूर बेरोजगार रहे। सीमेंट, लोहा, रोडी-डस्ट, लकड़ी यानि निर्माण से जड़ी सामग्रियों का कारोबार भी साल भर ठंडा सा ही रहा।

खास-म-खास

  1. ईंट भट्टे कारोबार की कमर टूटी
  2. साल में 11328 प्रापर्टी रजिस्ट्रियां हुई
  3. गत साल से 1273 प्रापर्टी ज्यादा बिकी।
  4. कृषि जमीन के 1511 बैनामे हुए
  5. प्लाटों के 1449 बैनामे हुए।
  6. मकानों के 580 बैनामे हुए।
  7. आवासीय कालोनियों पर लगा रहा ब्रेक।
  8. 230 अवैध कालोनियां चिन्हित की गई।
  9. विकास प्राधिकरण ने नहीं बनाए आवास।
  10. ईंट ढोने वाले 2000 ट्रकों के पहिए थमे।

नये साल से उम्मीदें

  • हैंडलूम और निरपुड़ा के कंबल उद्योग को मिलेगी संजीवनी
  • बागपत-खेकड़ा-बड़ौत विकास प्राधिकरण बनाएगा आवासीय कालोनी की योजना
  • रियल एस्टेट के लिए योजनाएं बनाएगी सरकार
  • उद्यमियों की शिकायतों का होना निस्तारण
  • यूपीएसआईडीसी उद्यमियों ने लिए बनाएगा बेहतर सुविधा देने की योजना 

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