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लेमन ग्रास से फूट पड़े बदलाव के अंकुर

फसल चक्र में बदलाव खेती की अहम जरूरत बन गई है। तमाम किसान एक ही लीक पर चलकर बेशक गन्ने को तबज्जो देते हैं लेकिन धर्मेंद्र ने खेती के विज्ञान को समझा भी और अपनाया भी। गन्ना बेल्ट में लेमन ग्रास की खेती का नया प्रयोग किया तो नतीजे सकारात्मक मिले। उनकी देखादेखी दो दर्जन अन्य किसानों ने भी इसकी खेती शुरू कर दी है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 10:38 PM (IST)Updated: Mon, 14 Oct 2019 06:06 AM (IST)
लेमन ग्रास से फूट पड़े बदलाव के अंकुर
लेमन ग्रास से फूट पड़े बदलाव के अंकुर

बागपत, जेएनएन। फसल चक्र में बदलाव खेती की अहम जरूरत बन गई है। तमाम किसान एक ही लीक पर चलकर बेशक गन्ने को तवज्जो देते हैं लेकिन धर्मेंद्र ने खेती के विज्ञान को समझा भी और अपनाया भी। गन्ना बेल्ट में लेमन ग्रास की खेती का नया प्रयोग किया तो नतीजे सकारात्मक मिले। उनकी देखादेखी दो दर्जन अन्य किसानों ने भी इसकी खेती शुरू कर दी है। ये हैं सांसद डा. सत्यपाल सिंह के पैतृक गांव बासौली निवासी 39 वर्षीय किसान धर्मेंद्र। गन्ना खेती में घटती आमदनी और बढ़ते खर्च से वह परेशान थे। समय से भुगतान न मिलने के कारण कर्ज चढ़ गया। खेती में बदलाव के लिए उन्होंने राज्य जैव विकास बोर्ड लखनऊ से लेमन ग्रास की खेती का 10 दिन का प्रशिक्षण लिया। मुफ्त बीज लेकर फरवरी-2019 में चार एकड़ भूमि पर लेमन ग्रास खेती शुरू की। साल में चार बार इसकी कटाई होती है। पहली फसल की कटाई कर वह तीन लाख रुपये कमा चुके हैं। उनकी कामयाबी देख बासौली, बरवाला व सूप के 22 किसानों ने 85 एकड़ भूमि पर लेमन ग्रास की खेती शुरू की है। गत 17 सितंबर को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी धर्मेंद्र को लेमन ग्रास की खेती करने पर शाबासी दे चुकीं हैं। तीन गुना आमदनी

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धर्मेंद्र की मानें तो गन्ना से साल में प्रति हेक्टेयर ढाई से तीन लाख तथा लेमन ग्रास से सात लाख रुपये तक कमाई हो सकती है। तीन लाख रुपये में लेमन ग्रास का तेल निकालने का प्लांट लगाया। एक एकड़ में प्रति फसल 50 लीटर तेल निकलता है। इसका बाजार भाव औसतन 1500 रुपये प्रति लीटर है। उन्होंने अपना तेल दिल्ली में बेचा था। यह तेल सौंदर्य प्रसाधन, इत्र व दवाइयां बनाने में काम आता है। प्रशिक्षण और बीज की निश्शुल्क सुविधा

कृषि उप निदेशक प्रशांत कुमार का कहना है लेमन ग्रास जीरो बजट की खेती है। इसके लिए जिले में ही बीज व मुफ्त प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। इस खेती में रासायनिक उर्वरक इस्तेमाल नहीं होते। कम सिचाई वाली इस खेती को बंजर जमीन में भी किया जा सकता है। एक बार बुआई के बाद पांच साल तक फसल मिलती रहती है।


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