कभी हजार रुपये कमाने वाले हाथ दे रहे 40 हाथों को रोजी
जागरण संवाददाता, बागपत : कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश हो तो लक्ष्य हासिल करने में गरीबी बाध
जागरण संवाददाता, बागपत : कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश हो तो लक्ष्य हासिल करने में गरीबी बाधा नहीं बन सकती। ऐसी ही कहानी है विकास शर्मा की। बचपन कमियों में गुजरा, परिवार पालने के लिए हजार रुपये की नौकरी की। सपने बड़े थे। लिहाजा नौकरी छोड़कर कर्ज लिया और खोल लिया मेडिकल स्टोर। फिर कर्ज लेकर अपनी फार्मा कंपनी खोली। वह अब जहां लाखों में खेलते हैं, वहीं कंपनी में नौकरी देकर 40 युवाओं को रोजगार भी देते हैं।
बागपत निवासी विकास शर्मा का बचपन कठिनाइयों में गुजरा। पिता राजेंद्र शर्मा लोगों की दरख्वास्त टाइप कर मुश्किल से परिवार पालने भर को कमा पाते। विकास ने स्नातक के बाद साल 1994 में खेकड़ा में हैंडलूम फैक्ट्री में सुपरवाइजर की नौकरी की। महीना भर मेहनत के बाद वेतन मिलता मात्र 1200 रुपये। दोस्त की सलाह पर नौकरी को बाय-बाय कर दिल्ली से डी फार्मा का कोर्स किया। डी फार्मा करने के बाद वर्ष 2004 में एक दवा कंपनी में 30 हजार रुपये महीना पर मेडिकल रिप्रेंजेटिव पद पर नौकरी की।
दवाई सप्लाई करने का अनुभव काम आया और फिर मेडिकल रिप्रेंजेटिव पद की नौकरी छोड़ अग्रवाल मंडी टटीरी में मेडिकल स्टोर खोला। काम चल निकला, लेकिन सीमित आय से सफलता की ऊंचाई का सपना पूरा होता मुश्किल दिखाई देने लगा। मेडिकल स्टोर छोटे भाई हिमांशु शर्मा को सौंप दिया। कर्ज लेकर अपनी फार्मा कंपनी खोली। सीधे बड़ी कंपनियों से एलोपैथिक दवा खरीदते और मेडिकल स्टोर तथा निजी अस्पतालों में सप्लाई करने लगे। दवाइयों की डिमांड बढ़ी तो चार युवाओं को नौकरी पर रख लिया।
आज उनकी कंपनी में 40 युवक मेडिकल रिप्रेंजेटिव के पद पर कार्य करते हैं, जिनका प्रति माह वेतन 12 से 30 हजार रुपये तक है। बागपत के साथ शामली, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और बिजनौर समेत पश्चिमी यूपी में उनकी दवाई सप्लाई होती है। अब हर माह लाखों के वारे-न्यारे करते हैं। सालाना करोड़ों का टर्न ओवर है। उनका लक्ष्य खुद दवाई बनाने की फैक्ट्री खोलना है, ताकि आमजन को सस्ती दवा मिलने लगे। बोले कि कोई काम असंभव नहीं लेकिन सफल होने के लिए शर्त है कि नियत में खोट नहीं होना चाहिए। युवाओं को नौकरी के पीछे भागने के बजाय स्वरोजगार अपनाना चाहिए।
कराते हैं गरीबों का इलाज
विकास शर्मा बागपत में कई नेत्र कैंप लगवा चुके हैं। हर कैंप में मरीजों को अपनी तरफ से मुफ्त दवा बांटते हैं। अब तक 30 से ज्यादा बेसहारा लोगों की आंखों का आपरेशन करा चुके हैं।