Move to Jagran APP

उर्वरकों में कमी के बावजूद खतरे में धरती मां की कोख

खेती में रासायनिक उर्वरकों में आई कमी कुछ राहत अवश्य देती है लेकिन धरती मां की कोख से खतरा नहीं टला है। साल 2014 में पीएम मोदी की सरकार के खेती पर फोकस कर मृदा स्वास्थ्य अभियान का बागपत में जमीनी असर दिखने लगा।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 10:48 PM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 06:12 AM (IST)
उर्वरकों में कमी के बावजूद खतरे में धरती मां की कोख
उर्वरकों में कमी के बावजूद खतरे में धरती मां की कोख

बागपत, जेएनएन। खेती में रासायनिक उर्वरकों में आई कमी कुछ राहत अवश्य देती है लेकिन धरती मां की कोख से खतरा नहीं टला है। साल 2014 में पीएम मोदी की सरकार के खेती पर फोकस कर चलाए गए मृदा स्वास्थ्य अभियान का बागपत में जमीनी असर दिखने लगा। उर्वरकों के इस्तेमाल में 19 फीसद की आई कमी से साफ है कि जहर से भरी धरती मैया की कोख बचाने के लिए किसानों को और जागरूक करने की जरूरत है।

loksabha election banner

बागपत में गौरीपुर परीक्षण लैब में पांच साल में 80 हजार मिट्टी के नमूनों की जांच से साबित हो गया कि जमीन में नाइट्रोजन तथा फास्फोरस न्यूनतम स्तर पर हैं। पोटाश की स्थिति मध्यम है। पीएच आठ पार करने को बेताब है जिससे धरती के ऊसर होने का खतरा है। इस भयावह स्थिति में थोड़ी राहत रासायनिक उर्वरकों में आई कमी से मिलती है। वर्ष 2015 में 70074 टन रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल किया। साल 2019 में रासायनिक उर्वरकों की खपत 57331 टन रही। यानी पांच साल में 12743 टन की कमी आई है। वहीं पांच साल में बायो फर्टिलाइजर की खपत चार हजार से बढ़कर 18 हजार टन पहुंच गई।

------------

छह मॉडल विलेज

रासायनिक उर्वरकों में कमी लाने, खेती खर्च कम करने और फसल उत्पादन बढ़ाने को कृषि विभाग ने बागपत में छह गांवों का चयन कर सभी 2395 किसानों के खेत की मिट्टी की जांच की गई। मुकंदपुर में 382, अब्दुलपुर मेवला में 448, फतेहपुरचक में 435, ब्राह्मणपुट्ठी में 260, नूरपुर मुजविदा में 198 तथा जिवाना गुलियाना में 672 किसानों के खेतों की मिटी जांच कर रिपोर्ट कार्ड बांटे हैं। इन गांवों की मिट्टी में जिक, सल्फर, पोटाश, जीवांश कार्बन, आयरन मानक से कम मिला। कृषि विभाग ने रसायनिक उर्वरकों में कमी लाने के जागरूक किया। वहीं 223 किसानों को मिट्टी सेहत संवारने को प्रति हेक्टेयर 2500 रुपये के हिसाब से 207 हेक्टेयर की सेहत सुधारने के लिए 5.17 लाख रुपये अनुदान दिया।

--------

जानिए किसानों का अनुभव

--अब्दुलपुर मेवला निवासी के सुभाषचंद, नूरपुर मुजविदा के अजय कुमार और फतेहपुर चक के राजीव कुमार ने कहा मृदा स्वास्थ्य कार्ड रिपोर्ट के अनुसार गेहूं की फसल में रसायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल करने, कंपोस्ट खाद, सूक्ष्म पोषक तत्वों का इस्तेमाल किया जिससे खेती खर्च में 20 फीसदी कमी आई है तो वहीं फसल पिछली साल से अच्छी है।

-----

रासायनिक उर्वरकों की खपत

साल मीट्रिक टन

2015 70074

2016 67304

2017 57820

2018 57616

2019 57331

------------------------

इन्होंने कहा..

खेती खर्च घटाकर फसल उत्पादन बढ़ाने को जैविक उर्वरकों की खपत बढ़ाकर रासायनिक उर्वरक कम किए जिसका हमें फायदा हुआ है।

-पूर्ण सिंह, किसान।

--

तीन साल पूर्व जैविक खाद का इस्तेमाल शुरू करने से पहले साल तो फसल उत्पादन पर असर पड़ा, लेकिन अब ज्यादा फसल उत्पादन मिल रहा।

-सुनील कुमार किसान।

------

धरती का पीएच 8 तक पहुंच गया। यदि थोड़ा और बढ़ा तो जमीन बंजर हो जाएगी। रासायनिक उर्वरकों कम इस्तेमाल तथा जैव उर्वरकों और सूक्ष्म पोषक तत्वों का खेती में इस्तेमाल ज्यादा करना होगा।

-शरणपाल सिंह, प्रभारी मृदा परीक्षण लैब।

------

रासायनिक उर्वरकों की खपत में कमी आई है। रासायनिक उर्वरकों की कमी में लाने को प्रेरित करने का कार्य करा रहे हैं। किसानों को रासायनिक उर्वरकों में कमी लानी होगी।

-डा. सूर्य प्रताप सिंह, जिला कृषि अधिकारी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.