एक बाइस्कोप से ¨जदा कर रखी संस्कारों की खेप
बाइस्कोप!.यह सुनते ही शायद आप बचपन की उन यादों में खो जाएंगे, जब बाइस्कोप के जरिए फिल्म देखकर फूले नहीं समाते थे। उसमें देखी सत्यवादी हरिश्चंद्र की फिल्म ने मोहनदास कर्मचंद गांधी को बापू तक बनने तक की प्रेरणा और संबल दिया। स्मार्टफोन की दुनिया आने से पहले ही बाइस्कोप गुम हो गए। ऐसे में श्याम ¨सह दशकों पुरानी बाइस्कोप से फिल्म दिखाने की परंपरा निभाकर संस्कारों की पौध को ¨जदा रखे हुए हैं।
बागपत: बाइस्कोप!.यह सुनते ही शायद आप बचपन की उन यादों में खो जाएंगे, जब बाइस्कोप के जरिए फिल्म देखकर फूले नहीं समाते थे। उसमें देखी सत्यवादी हरिश्चंद्र की फिल्म ने मोहनदास कर्मचंद गांधी को बापू तक बनने तक की प्रेरणा और संबल दिया। स्मार्टफोन की दुनिया आने से पहले ही बाइस्कोप गुम हो गए। ऐसे में श्याम ¨सह दशकों पुरानी बाइस्कोप से फिल्म दिखाने की परंपरा निभाकर संस्कारों की पौध को ¨जदा रखे हुए हैं। बायस्कोप पर फिल्मी ²श्य देख बच्चे इतने रोमांचित हो जाते हैं कि उनसे यह पूछे बिना नहीं रहते कि फिर कब आओगे अंकल..
बागपत के बामनौली गांव निवासी श्याम ¨सह ने जब होश संभाला तो विरासत में मिले बाइस्कोप से फिल्म दिखाने का पुश्तैनी काम शुरू कर दिया। 60 वर्षीय
श्याम ¨सह बाइस्कोप से बच्चों और बड़ें को मनोरंजन कराते हैं। एक गांव में बच्चों को फिल्म दिखाने के बाद फिर वह जादुई मशीन को कंधे पर रखकर दूसरे गांव की ओर रुख करते हैं। जहां जाते हैं, वहीं हर किसी के कदम उनका बाइस्कोप देखने को ठहर जाते हैं। बच्चों की तो पूछिए ही नहीं, उनके लिए तो बाइस्कोप अजूबे से कम नहीं।
जैसे ही वह कंधे से बाइस्कोप उतारकर उसमें लगे लाउडस्पीकर से तेज आवाज में शोले फिल्म का डायलॉग 'तेरा क्या होगा रे कालिया' अथवा 'चल बसंती'
या देशभक्ति से ओतप्रोत-'मेरा रंग दे बसंती चोला' आदि गीत बजाते हैं, वैसे ही बच्चों की भीड़ उमड़ पड़ती है। श्याम ¨सह की मानें तो पश्चिम उत्तर प्रदेश में
वह अकेला शख्स हैं जो बायस्कोप के जरिए संस्कारयुक्त तथा देशभक्ति से प्रेरित फिल्मी ²श्य दिखाते हैं। पश्चिम यूपी के अलावा हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और हिमाचल के गांवों में बाइस्कोप के जरिए फिल्म दिखाकर संस्कार बांट रहे हैं। फिल्मों की रील की क¨टग कर बाइस्कोप में लगे लेंस से पांच मिनट के ²श्य दिखाते हैं।
श्याम ¨सह कहते हैं कि हरियाणा के गांवों में लोग जैसे ही बाइस्कोप देखते हैं, वैसे ही आवाज लगाकर बुलाकर यह कहने लगते हैं कि-यार तूने तो म्हारी बचपन की याद ताजा कर दी।..अब कोई फिल्म दिखाकर गाना सुना दे। बोले कि जब उन्होंने 16 साल की आयु में बाइस्कोप से फिल्म दिखानी चालू की थी, तब प्रति बच्चा या प्रति व्यक्ति एक आना लेते थे। अब प्रति व्यक्ति तीन से पांच रुपये मिलते हैं। अब घर-घर टीवी और हर हाथ में स्मार्टफोन है। पहले बाइस्कोप से युवा और बुजुर्ग भी फिल्म देखते थे। अब सिर्फ बच्चे फिल्म देखते हैं। युवाओं और बड़ों के हाथ में तो फिल्म देखने को स्मार्टफोन है। बाइस्कोप को इसलिए ढो रहे हैं कि पुश्तैनी पेशा जो है।