Move to Jagran APP

सिसाना में बनी थी असेंबली को उड़ाने की योजना

बागपत : देश की आजादी की लड़ाई में बागपत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। फिरंगी हुकूमत की असेंबली को बम स

By Edited By: Published: Mon, 15 Aug 2016 12:16 AM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2016 12:16 AM (IST)
सिसाना में बनी थी असेंबली को उड़ाने की योजना

बागपत : देश की आजादी की लड़ाई में बागपत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। फिरंगी हुकूमत की असेंबली को बम से उड़ाने की योजना सिसाना में बनी, जिसमें विमल प्रसाद जैन गिरफ्तार हुए।

loksabha election banner

बागपत के सिसाना गांव निवासी लाला विमल प्रसाद जैन की शहीद भगत ¨सह, चंद्रशेखर आजाद व बटुकेश्वर दत्त से गहरी दोस्ती थी। भगत ¨सह, चंद्रशेखर आजाद और बटुकेश्वरदत्त ने सिसाना गांव में लाला विमल प्रसाद जैन के साथ असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई थी। योजना के अनुसार 24 मार्च 1929 को सहारनपुर से बम सिसाना गांव लाकर रखे गए। फिर तीन अप्रैल की रात में लाला विमल प्रसाद जैन समेत भारत माता के ये सच्चे सपूत बम लेकर दिल्ली पहुंचे। बताया जाता है कि चार अप्रैल को शहीद भगत ¨सह और बटुकेश्वरदत्त असेंबली में अंदर घूसे और बम फेंका। लाला विमल प्रसाद जैन व चंद्रशेखर आजाद पिस्टल लेकर बाहर खड़े रहे। बम फेंकने के तुरंत बाद भगत ¨सह और बटुकेश्वरदत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। विमल प्रसाद जैन पहले से ही लिफाफे में बंद बम फेंकने की जिम्मेदारी लेने संबंधी प्रेस विज्ञप्ति को दिल्ली के एक अखबार के दफ्तर में देकर आए।

असेंबली पर बम फेंकने की घटना ने दुनिया का ध्यान खींचा व देश की आजादी का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छाया रहा। बाद में बम कांड में लाला विमल प्रसाद जैन भी गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें अनेक बार पुलिस के जुल्म-ओ-सितम का शिकार होना पड़ा, लेकिन देश की खातिर अपने इरादों से टस से मस नहीं हुए।

आजादी के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने केंद्र सरकार में मंत्री बनने का निमंत्रण दिया था। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि हमनें मंत्री बनने के लिए देश की आजादी की लड़ाई नहीं लड़ी है। देश के वीर सपूत लाला विमल प्रसाद जैन के चचेरे भाई स्व. जगदीश प्रसाद जैन के बेटे सत्येंद्र जैन और जिवेंद्र जैन बताते हैं कि एक बार सिसाना गांव में दुर्गा भाभी भी आई थी।

आजादी की हर लड़ाई में बागपत

बागपत: 1857 में बिजरौल के बाबा शाहमल के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे करने में कसर नहीं रखी। 1940 को नमक सत्याग्रह आंदोलन में पिलाना के अनूप ¨सह और साल 1942 के असहयोग आंदोलन में रमाला के अतर ¨सह को सजा हुई थी। बावली के अजब ¨सह, दाहा के अमन ¨सह, हिसावदा के अर्जुन ¨सह, बोढा के आचार्य दीपांकर, सिलाना के आशाराम तथा अमीनगर सराय के आशाराम जैन, सूप के इंद्रराज, तेडा के केहर ¨सह, टयोढ़ी बिशन ¨सह समेत सैकड़ों वीरों ने देश आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। ढिकौली के कबूल ¨सह कमांडर को 1931 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर एक साल की सजा हुई थी।

आए थे बापू और बोस

बागपत: बुजुर्गों के अनुसार 1942 में महात्मा गांधी खेकड़ा आए थे और सभा को संबोधित किया था। वहीं एक बार सुभाष चंद्र बोस भी बागपत आए थे और बिचपुड़ी गांव के नहर पुल पर लोगों को देश की आजादी के लड़ाई में हिस्सा लेने की अपील की थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.