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हमारी गाय नहीं, मां भी थी..

By Edited By: Published: Mon, 22 Apr 2013 12:25 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2013 12:28 PM (IST)
हमारी गाय नहीं, मां भी थी..

खेकड़ा : इस घोर कलयुग में भी इंसानियत और संस्कार जिंदा हैं। शायद तभी एक परिवार ने गाय को केवल दुधारू पशु नहीं बल्कि उसे सही मायनों में मां यानी गऊमाता का दर्जा दिया। अपने परिवार की प्रिय सदस्य के अंतिम प्रयाण पर उसे धार्मिक रीति-रीवाज के साथ संस्कार करने के साथ अनुष्ठान भी कराए।

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बसी गांव के ब्राह्मण परिवार ने अपनी प्रिय गाय गौरी की मृत्यु पर सभी धार्मिक अनुष्ठान किए। रविवार को तेहरवीं का आयोजन कर पूरे गांव को भोज कराया।

बसी गांव के मोहल्ला दरियापुर में अंगूरी देवी पत्‍‌नी जयप्रकाश शर्मा अपने चार पुत्रों समेत भरे पूरे परिवार के साथ रहती हैं। वर्षो से उनका परिवार अपनी गाय गौरी की परिवार के सदस्यों के समान सेवा कर रहा था। गौरी कई वर्षो से दूध भी नहीं देती थी, लेकिन इससे परिजनों को कोई फर्क नहीं था और वे उसकी सेवा मां के समान करते थे। बीते 7 अप्रैल को अचानक गौरी की मृत्यु हो गई। दुखी परिवार ने विधि-विधान से उसका संस्कार संपन्न किया। रविवार को उसकी तेहरवीं में प्रात:काल हवन का आयोजन किया गया। संस्कृत पाठशाला से बुलाए गए 21 ब्राह्मणों को भोज कराकर दान दक्षिणा दी गई। तत्पश्चात पूरे गांव के अलावा रिश्तेदारों, मित्रों, बंधु-बांधवों ने भोज किया। सभी ने गौरी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजली भी दी। परिजनों में अंगूरी देवी, ओमप्रकाश शर्मा, सतीश शर्मा, श्रवण शर्मा, बिजेन्द्र शर्मा, उपेन्द्र शर्मा के अलावा महिला व बच्चे अंकुर, अभिनव, हर्षित शामिल रहे। गाय के प्रति इतने आदर भाव की चर्चा देहात में भी रही।

हिन्दू संस्कृति में गाय

को देते हैं मां का दर्जा

नगर के ठाकुरद्वारा मंदिर के पुजारी उमेश चंद्र कौत्स ने बताया कि हिन्दू संस्कृति में गाय का स्थान मां के समान है। गाय की सेवा से परिवार में सुख शांति व समृद्धि आती है। गौमाता को परिवार के सदस्य के रूप में मानकर उनकी मृत्यु पर संस्कार पूर्ण करके बसी के परिवार ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

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