कभी पहेली थी गणित, अब नन्हे आर्यभट्ट की अंगुलियों पर खेलती है
गणित वह विषय है जो बचपन की पहली कक्षा से एक पहेली की तरह लगती हैं।
प्रमोद मिश्र, बिसौली (बदायूं) :
गणित वह विषय है जो बचपन की पहली कक्षा से एक पहेली की तरह लगती है। कुलदीप और आकाश के लिए भी पहेली थी। खौफ थी। हर्रायपुर गांव के परिषदीय विद्यालय में आठवीं के इन छात्रों ने विषय से दोस्ती की। उससे जूझे। लड़े और ईजाद किया बक्सा फार्मूला। धन जमा करने, ब्याज, कठिन जोड़ के सवालों को बॉक्स मैथड से पलक झपकते ही हल कर देते हैं। इन नन्हे आर्यभट्टों की खोज की गूंज लखनऊ तक पहुंची। हाल ही में शिक्षा निदेशक ने नई प्रतिभा खोज पुरस्कार से नवाजा है।
क्या है बॉक्स फार्मूला
बिसौली कस्बे का हर्रायपुर साधारण सा गांव है। इसी के उच्च प्राथमिक विद्यालय के छात्र हैं दोनों। अक्सर अन्य बच्चों की तरह दिन, घंटे, ब्याज, मूलधन के सवालों पर गाड़ी अटक जाती थी। इसे आसानी से सीखने के लिए बक्से को आधार बनाया। इसे बैंक का नाम दिया। बक्से में सवाल में पूछे गए दिन, धन, ब्याज की पर्ची लिखकर डालते। उसके जरिए रकम जमा होने, ब्याज का व्यावहारिक आंकलन करते। जवाब सटीक आए तो प्रयोग हिट हो गया। स्कूल के अन्य बच्चे भी इसी माध्यम से सीखते हैं।
गुरुजी, कुंवरसेन ने दिखाई दिशा
इन बालकों के प्रयोग को दिशा दिखाई शिक्षक कुंवर सेन ने। बॉक्स मैथड से कठिन सवालों के सरलता से हल निकालने के तरीके को राज्य कमेटी के पास भेजा। वहां इसे परखा गया। शिक्षा निदेशक डॉ. विक्रम बहादुर ने आकाश और कुलदीप, शिक्षक कुंवरसेन को पुरस्कृत किया।
सौ फीसद उपस्थिति बनी नजीर
दोनों विद्यार्थी अभिनव प्रयोग और पढ़ाई के प्रति तो समर्पित हैं ही, विद्यालय में उपस्थिति भी सौ फीसदी रहती है। इसके लिए दोनों को पुरस्कार देकर प्रोत्साहित भी किया गया।
दादी-बाबा, ताऊ-ताई को पढ़ा रहे क, ख, ग
यह होनहार विद्यार्थी केवल अपनी पढ़ाई तक ही सीमित नहीं हैं। गांव में अपनी उम्र के बच्चों के साथ मिलकर कर दादी-बाबा, ताऊ, ताई की उम्र के लोगों को साक्षर बनाने की मुहिम में शुरू की। अपने शिक्षक कुंवरसेन के साथ इन्हें क, ख, ग सिखाते हैं। खुले में शौच न जाने और शौचालय का प्रयोग करने को भी प्रेरित करते हैं।