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स्वार्थ से रहें दूर, मन से रहेंगे स्वस्थ

स्वार्थ से परे स्वार्थ से दूर रहने के लिए पहले हमें स्वार्थ शब्द का अर्थ जानना बहुत जरूरी है। स्वार्थ शब्द स्व और अर्थ। जिसमें स्व का मतलब है अपना और अर्थ शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में जैसे धन संपत्ति मतलब प्रयोजन उद्देश्य लक्ष्य आदि में किया जाता है। स्वार्थ शब्द का अर्थ स्वयं का हित है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 12:55 AM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 12:55 AM (IST)
स्वार्थ से रहें दूर, मन से रहेंगे स्वस्थ
स्वार्थ से रहें दूर, मन से रहेंगे स्वस्थ

जेएनएन, बदायूं :

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स्वार्थ से परे

स्वार्थ से दूर रहने के लिए पहले हमें स्वार्थ शब्द का अर्थ जानना बहुत जरूरी है। स्वार्थ शब्द स्व और अर्थ। जिसमें स्व का मतलब है अपना और अर्थ शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में जैसे धन संपत्ति, मतलब, प्रयोजन उद्देश्य, लक्ष्य आदि में किया जाता है। स्वार्थ शब्द का अर्थ स्वयं का हित है। जब व्यक्ति केवल अपने मतलब के विषय, अपने लाभ, अपने ही जीवन, अपने ही परिवार, माता-पिता, भाई-बहन आदि की भलाई के लिए कर्म करता है। उसे स्वार्थ कहते हैं। स्वार्थ से दूर रहने के लिए आवश्यक है कि मन से स्वस्थ रहें। दृढ़ संकल्प लें कि परोपकार को वरीयता देंगे। दोहा है कि वृक्ष कबहु न फल भखै, नदी न संचय नीर, परमार्थ के कारने, साधुन धरा शरीर। स्वार्थ अपने हित का हो तो मुझे अच्छी सांस लेना, अच्छा भोजन प्राप्त करना, अपने लिए ही अच्छा प्राप्त करना है। इस दृष्टि से पृथ्वी के सभी सजीव स्वार्थी हैं। उसका स्तर व सघनता अलग-अलग हो सकती है। जैसे वृक्ष अपने फल अपनी संतति के बीज स्वरूप उत्पन्न करता है। बाकि जीव फल खाकर अपनी भूख तो मिटाते ही हैं। साथ ही कही न कहीं उसके बीजों को सही जगह पहुंचाने में भी मदद करते हैं। इस प्रकार तो स्वार्थ व परोपकार एक दूसरे के पूरक होते हैं। स्वार्थ से परे रहने पर जीव जीवन में परोपकार की राह पर चल सकता है। सद्कर्म कर सकता है। सद्कर्म से जीवों में प्रेम उत्पन्न होगा, प्रेम से परहित होगा, परहित से सुख शांति प्राप्त होगी। साथ ही मान जाति का भी कल्याण होगा। आज के परिवेश में स्वार्थवृत्ति बहुत बढ़ गई है। अपने सामान्य स्वार्थ के लिए भी व्यक्ति अन्य जीवों के प्राण ले लेता है। जैसे सांप, बिच्छू ने काटा नहीं। लेकिन, वह काट सकता है तो लोग उन्हें देखते ही मार देते हैं। स्वार्थी मनुष्य हिसक व क्रूर बन गया है जितने तो विषैले जीव भी नहीं हैं। सांप विषैला होने के बाद भी सपेरा की जीविका चलाता है। सिंह, बाघ जैसे अनेक पशु हिसक होने के बाद भी सर्कस वालों को आय अर्जित कराते हैं। अतिस्वार्थी मनुष्य किसी का सहारा बनने की बजाय बुरा ही करता है। स्वार्थी लोगों को एक दिन उसका नुकसान उठाना पड़ता है। आज के समय जरूरी है कि स्वार्थ से दूर रहकर जीवन जीने की कला सीखनी होगी।

कभी-कभी व्यक्ति कई बार चाहकर भी स्वार्थ से परे नहीं रह सकता। आसपास के वातावरण व संसार के मोह ने उसे जकड़ लिया है। व्यक्ति जिस वातावरण में रहता है उसका असर पड़ता है। व्यक्ति को बचपन में बुजुर्गों से संस्कार सीखता है। परिवार भी बच्चों को परोपकार सिखाएं। कहा जाता है कि पृथ्वी पर ही स्वर्ग है। यह स्वर्ग स्वार्थ से परे है।

- वीना कोचर, प्रधानाचार्य, सिगलर मिशन ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज, बदायूं


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