बोले उद्यमी, टैक्स में छूट तो शस्त्र लाइसेंस में मिले वरीयता
देश मे चुनावी बिगुल फुंक चुका है। दिल्ली के सिंहासन पर आसीन होने को दलों में आपाधामी मची है।
बदायूं : देश मे चुनावी बिगुल फुंक चुका है। दिल्ली के सिंहासन पर आसीन होने के लिए जहां राजनैतिक दलों में आपाधापी मची हुई है। वहीं व्यापारी तबका अब चुनाव को लेकर क्या मन बनाए बैठा है। उनकी क्या मांग है और क्या जरूरतें इन मुद्दों पर नब्ज टटोलने के लिए जागरण की ओर से उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल कंछल गुट के प्रांतीय संयुक्त महामंत्री व नगर अध्यक्ष नवनीत गुप्ता के प्रतिष्ठान पर व्यापारियों की चौपाल का आयोजन हुआ। इसमें व्यापारियों ने अपनी बात बेवाकी से रखी।
चुनाव की चर्चा शुरू हुई तो सभी व्यापारी रूपेंद्र सिंह लामा ने कहा कि सांसद भले ही कोई बने लेकिन व्यापारियों की सुरक्षा को लेकर उसे सजग होना चाहिए। व्यापारियों को शस्त्र लाइसेंस प्राथमिकता के आधार पर मिलें यह बात सदन में भी उठनी चाहिए। इसी बीच व्यापारी पराग साहू ने दो टूक कहा कि सुरक्षा ही नहीं व्यापारियों की श्रेणी भी जरूरी है, क्योंकि सबसे ज्यादा हम ही सरकार को टैक्स देते हैं और इसलिए जरूरी है कि जो व्यापारी सबसे ज्यादा टैक्स दें उन्हें वीआइपी सुविधाएं मिलनी चाहिए। इसी बीच प्रमोद अग्रवाल बोल पड़े कि छोटे व्यापारी का हित सबसे जरूरी है, इसलिए टैक्स की दर 20 लाख से अधिक के कारोबारियों पर लागू हो, क्योंकि छोटे व्यापारियों के बिना तो व्यापार और बाजार चलना ही असंभव है। राकेश गुप्ता, भुवनेश्वर गुप्ता और संजय गुप्ता ने भी उनकी बात का समर्थन किया। वहीं विनय गुप्ता ने बड़े व्यापारियों के हित के मुद्दे को उछाल दिया। उनका कहना था कि जीएसटी में संशोधन इतने ज्यादा हुए कि व्यापारी असमंजस की स्थिति में रहा। इसलिए सारे संशोधन खत्म करते हुए जीएसटी की दर एक समान की जाए। राजेश कुमार और प्रवीन रायजादा ने छोटे व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए योजनाएं चलाने का मुद्दा फिर से उठा दिया। आम सहमति के बीच व्यापारी विनय गुप्ता ने अपनी बात रखी जो सभी को पसंद आई। उनका कहना था कि नोटबंदी से बाजार में मंदी आई थी, इससे लंबे समय तक हर तबका जूझा और देशभर का व्यापार प्रभावित हुआ। राकेश रावत ने उनकी बात का समर्थन करते हुए एफडीआइ के कारण रिटेल कारोबार पर पड़े प्रभावों का जिक्र छेड़ दिया। कुल मिलाकर व्यापार क्षेत्र से जुड़े लोगों को इन पांच साल में काफी कुछ मिला भी लेकिन अभी और कुछ और भी मिले, इसकी ख्वाहिश बाकी है।