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नमो दव्यै महादेव्यै :: हुनर को घर बैठे तराश रहीं शिल्पी

उच्च शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती। घर में रहकर भी समाज में रोशनी फैलाने की ताकत मिल जाती है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Sep 2019 12:27 AM (IST)Updated: Mon, 30 Sep 2019 06:21 AM (IST)
नमो दव्यै महादेव्यै :: हुनर को घर बैठे तराश रहीं शिल्पी
नमो दव्यै महादेव्यै :: हुनर को घर बैठे तराश रहीं शिल्पी

जागरण संवाददाता, बदायूं : उच्च शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती। घर में रहकर भी समाज में रोशनी फैलाने की ताकत मिल जाती है। शिल्पी अनूप यह चरितार्थ कर रही हैं। घर बैठे हुनर को तराश रही हैं, राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में स्थान पा रही हैं। इतना ही सामाजिक कार्यों से जुड़कर वह असहाय, गरीब महिलाओं और बच्चों की सेवा भी कर रही हैं। बदायूं क्लब के मंच पर उन्हें सम्मान भी मिल चुका है। शहर में मढ़ई चौक निवासी शिल्पी ने डबल एमए के साथ बीएड की डिग्री भी हासिल की है। पति अनूप रस्तोगी अच्छे व्यवसायी हैं। गीत, गजल लेखन तो उन्होंने पढ़ाई के दौरान ही शुरू कर दिया था, धीरे-धीरे इसे जीवन का हिस्सा बना लिया। घर में रहकर भी उन्हें इसके लिए भरपूर मौका मिला है। वह गजल और गीत लिखती रहीं और राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में उनका प्रकाशन भी होता रहा। अब वह पुस्तकों की समीक्षा भी करती हैं, राष्ट्रीय स्तर की कई पत्र-पत्रिकाओं से उन्हें समीक्षा की जिम्मेदारी भी मिलती है। धीरे-धीरे उन्होंने सामाजिक दायरा बढ़ाना शुरू किया। डॉ.सोनरूपा विशाल द्वारा संचालित सामाजिक संस्था पंख और खिलौना की सक्रिय सदस्य बन गईं। अब कहीं महिलाओं का कार्यक्रम हो तो इनकी मौजूदगी जरूरी रहती है। वह निर्धन महिलाओं और बच्चों की मदद के लिए संस्था के माध्यम से हमेशा आगे रहती हैं। वह कहती हैं कि जिदगी को समझने और जीने के लिए अवसर खुद बनाने पड़ते हैं, अपनी रूचि का कार्यक्षेत्र हो तो काम करने में आनंद की अनुभूति होती है। अपनी गजल गुनगुनाते हुए कहती हैं-खिली धूप तो कभी बारिशों सी तुझे सलाम है जिदगी। डगर इक जरा जरा ख्वाहिशों की उसी का नाम है जिदगी।

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