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आओ संकल्प लें, नई शक्ल में जन्मे रावण का करें अंत

बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा को लेकर तैयारियां चल रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 01:06 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 01:06 AM (IST)
आओ संकल्प लें, नई शक्ल में जन्मे रावण का करें अंत
आओ संकल्प लें, नई शक्ल में जन्मे रावण का करें अंत

बदायूं : बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा को लेकर तैयारियां चल रही हैं। इस खास दिन पर बुराइयां त्यागकर अच्छे कार्यो का संकल्प लिया जाता है। मगर, अब यह संदेश खत्म होता जा रहा है। बुराइयां अच्छाई पर हावी होती जा रही हैं। ऐसे में हमको समाज में परिवर्तन लाने की जरूरत है। यह परिवर्तन कोई एक इंसान नहीं ला सकता, इसमें सभी की सहभागिता जरूरी है। रावण रूपी जो भी बुराइयां समाज में पैदा हो रही हैं, उन बुराइयों को खत्म करने की जरूरत है। यही हमारा दशहरा का शुभ संकेत होगा। विजय दशमी के मौके पर अपने परिवार, परिचित और रिश्तेदारों को यह संकल्प दिलाएं कि वह समाज में फैली कुरुतियों को दूर करने के साथ ही सिस्टम में पनप चुके भ्रष्टाचार को भी खत्म करेंगे। साइबर अपराध से लेकर मिलावट, महंगाई, सोशल मीडिया में उलझे बचपन को बाहर लाने की जरूरत है। यह सब सुधार होना ही हमारा विजयदशमी का पर्व होगा।

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सोशल मीडिया में उलझा बचपन

पढ़ाई के साथ-साथ सामाजिक ज्ञान बच्चे को बहुत जरूरी है। ताकि उस ज्ञान के जरिए वह देश का भविष्य तय कर सके। हमारी युवा पीढ़ी ही देश का भविष्य होती है। मगर, यह भविष्य हमारे संस्कार, सरोकार से पिछड़ते जा रहे हैं। बचपन ही उनका सोशल मीडिया में उलझकर रह गया है। इससे भविष्य की नींव खोखली होती जा रही है। बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखें, ताकि उसमें व्यवहारिक ज्ञान आ सके। विजय दशमी पर यह संकल्प लेने की भी सभी को जरूरत है।

निजी स्वार्थ में पारिवारिक विघटन

निजी स्वार्थ के चलते अब खूनी रिश्ते भी कमजोर होते जा रहे हैं। पारिवारिक विघटन के पीछे पूरी तरह से निजी स्वार्थ ही सामने आ रहा है। जहां राम की खातिर लक्ष्मण जैसे भाई अपना राज पाठ त्याग चुके थे, वहीं अब मामूली संपत्ति की खातिर भाई भाई का ही दुश्मन बन जाता है। बेटे पिता तो भतीजे चाचा की जान लेने पर तुले रहते हैं। इस तरह से सामाजिक पतन हो रहा है और इसके पीछे भी सामाजिक और व्यवहारिक ज्ञान का अभाव है। हमको अपने रिश्तों को मजबूत करने की जरूरत है।

साइबर क्राइम रोकने को हों ठोस इंतजाम

लूट, हत्या या डकैती के साथ अब साइबर क्राइम ने भी अपराध जगत में अपनी पकड़ बना ली है। कहीं लोगों को फोनकॉल करके उनके बैंक अकाउंट से संबंधी जानकारियां जुटाकर चंद मिनट में हजारों-लाखों की चपत लगा देते हैं। वहीं एटीएम कार्ड बदलकर ठगी की घटनाएं भी जब-तब होती रहती हैं। इंटरनेट बैं¨कग के जरिये खरीददारी करने वालों को भी अक्सर ये जालसाज चूना लगा देते हैं। जिले में ही कॉल करके खाते से रकम उड़ाने के इस साल में अभी तक 72 मुकदमे विभिन्न थानों में दर्ज हुए हैं। वहीं जिक्र अगर एटीएम बदलकर ठगी का करें तो ऐसे भी 57 मुकदमे दर्ज हैं। खासियत यह है कि इनमें किसी भी घटना का पर्दाफाश पुलिस नहीं कर पाती। क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से बने फर्जी नंबरों से का¨लग होती है और एक बार शिकार करने के बाद उन नंबरों की पड़ताल सर्विलांस सेल भी नहीं कर पाती।

थायराइड, शुगर और ब्रेन स्ट्रोक

सरकारी हो या निजी अस्पताल। हर जगह अब नई-नई जांचें और नई-नई बीमारियों के नाम सुनने में आते हैं। ये वो बीमारियां हैं, जिनका प्रतिशत पिछले 10 साल में तेजी के साथ बढ़ा है। मसलन काला पीलिया, थायराइड, शुगर या फिर ब्रेन स्ट्रोक। बीमारियां पहले भी थीं लेकिन अचानक इनका ग्राफ बढ़ चुका है। डब्ल्यूएचओ का दावा है कि इसी तरह शुगर की बीमारी बढ़ती रही तो वर्ष 2030 में जितने रोगी अभी हैं, उनकी संख्या ठीक दोगुनी हो जाएगी। लीवर और किडनी से संबंधी बीमारियों में भी इजाफा हो रहा है।

महंगा इलाज व दवाओं में खेल

गंभीर बीमारी का इलाज कराना कम से कम मध्यमवर्गीय तबके के लोगों के लिए काफी कठिन है। क्योंकि दिल और दिमाग से संबंधित दवाएं महंगी हैं। उस पर किसी तरह इलाज करा भी लिया जाए तो निजी अस्पतालों के संचालक तीमारदार को इलाज के नाम पर तोड़कर रख देते हैं। फाल्सीपेरम मलेरिया या डेंगू के मरीजों को निजी अस्पतालों में आईसीयू में रखकर इलाज किया जाता है। खेल यह है कि जो दवा डॉक्टर लिखते हैं, वह उन्हीं के अस्पताल के मेडिकल पर उपलब्ध होती हैं। बाहर के किसी मेडिकल की दवा से साफ इंकार कर दिया जाता है। जबकि अस्पताल के मेडिकल पर दवा के मुंहमांगे रुपये वसूले जाते हैं।


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