परों को खोल जमाना सिर्फ उड़ान देखता है..
यूं जमीन पर बैठकर क्यों आसमान देखता है, परों को खोल कि जमाना सिर्फ उड़ान देखता है।
बदायूं: यूं जमीन पर बैठकर क्यों आसमान देखता है, परों को खोल कि जमाना सिर्फ उड़ान देखता है। जीवन अनवरत संघर्षो की बड़ी कहानी से अधिक और कुछ भी नहीं। संघर्ष करके जीत की इबारत लिखने वाले अनेकों उदाहरण हर युग व हर देश में मिलते रहे हैं। भारतवर्ष के अनेक संघर्षशील युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत अर्जुन पुरस्कार विजेता दीपा करमाकर एक बड़ा उदाहरण हैं। गरीबी में जन्मी, चपटे तलवे की समस्या से ग्रसित एवं भारत के पिछड़े राज्य के छोटे गांव से होने के बाद भी उनके हौसलों ने सफलता प्राप्त की और नई प्रेरक कहानी बनीं। उन्हें विश्व क्षितिज पर नई ऊंचाइयां प्रदान कीं। वह भारत का गौरव हैं। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को नई ऊंचाइयों पर स्थापित करती हैं। 52 साल के अंतराल में कोई भारतीय जिम्नास्ट ओलंपिक में प्रतिभाग कर सका। वाकई दीपा की कहानी हर आगे बढ़ते नौजवान को संघर्ष करके कभी न थकने वाली प्रेरणा देती है।
जीवन में आप चाहे कितनी ही परेशानियों व हताशा से घिरे हों, लेकिन यदि आप अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण भाव से आगे बढ़कर संघर्ष करते हैं तो निश्चय ही विजय प्राप्त करते हैं। दीपा करमाकर जब अपनी पहली प्रतियोगिता में भाग लेने जा रही थीं तो उनके पास कॉस्टयूम खरीदने के लिए पैसे नहीं थे व जूते भी नहीं थे। किसी से मांगकर कास्ट्यूम पहनी जो पूरी तरह से उन्हें फिट भी नहीं आ रही थी। परंतु उन्होंने अपने हौसलों की उड़ान को अपने आत्मविश्वास से जीतकर सफलता का नया इतिहास लिखना शुरू किया। आज दीपा को कौन नहीं जानता। विश्व में प्रत्येक क्षेत्र ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने संघर्षों के पहाड़ को अपने हौसलों से जीता है। छात्र जीवन आराम से सोने का नाम कदापि नहीं है। यह जीवन का वह स्वर्णिम काल होता है जो आने वाले समय का कोई बड़ा इतिहास लिखने को आतुर होता है। यदि इस समय को बच्चे भौतिकता व आकर्षण से दूर रख कठिन परिश्रम की ठान लें, तो कोई भी क्षेत्र आसानी से जीत सकता हैं। बाल जीवन में यह तय करना आवश्यक है कि परिश्रम की दिशा क्या हो? जीवन में पाना क्या है? अपने लिए कुछ कठिन नियम में बांधना होता है और फिर समय आपको इतिहास की नई इबारत लिखवाने के लिए चुन लेता है। प्रत्येक बच्चे को हौंसलों की उड़ान निश्चय ही आजमानी चाहिए ताकि इतिहास उन्हें भी अपनी गोद में उठा ले। याद रखना चाहिए कि डर मुझे भी लगा फासला देखकर, पर मैं बढ़ता गया रास्ता देखकर। खुद-व-खुद मेरे न•ादीक आती गई, मेरी मंजिल मेरा हौसला देखकर।
- शरद बंसल, प्रबंध निदेशक, टिथोनस इंटरनेशनल स्कूल, बदायूं