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पटाखों के धुएं में उड़ गया सरकारी आदेश

आखिर वही हुआ जो सालों से होता आया है। इस बार भी दीपावली पर आधी रात के बाद भी पटाखे छुडाते रहे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 01:21 AM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 01:21 AM (IST)
पटाखों के धुएं में उड़ गया सरकारी आदेश
पटाखों के धुएं में उड़ गया सरकारी आदेश

बदायूं : आखिर वही हुआ जो सालों से होता आया है। इस बार भी दीपावली पर आधी रात के बाद भी पटाखों का शोर फिजाओं में गूंजता रहा। देर रात तक होने वाली आतिशबाजी पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस द्वारा बनाया गया मास्टर प्लान धरा रह गया।

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पर्यावरण प्रदूषण पर सर्वोच्च न्यायालय ने ¨चता जाहिर करते हुए पटाखों पर अंकुश लगाने का आदेश जारी किया था। सरकार ने अधिकारियों को आदेश का कड़ाई से पालन कराने का आदेश जारी किया था। दीप पर्व से पहले जिम्मेदार अधिकारी भी लंबे-चौड़े दावे कर रहे थे, लेकिन नतीजा शून्य रहा। पटाखों के धुएं में सरकार का आदेश उड़ा दिया गया। असहाय दिखा सिस्टम मूक दर्शक की भूमिका में नजर आया।

दीपावली पर होने वाली आतिशबाजी पर अचानक रोक लगाना आसान नहीं था। इसका अंदाजा तो सभी को था, लेकिन माना जा रहा था कि सख्ती बरती जा रही है। देर रात तक आतिशबाजी कर फिजाओं में जहर घोलने में कमी आएगी। यह सही है कि इस बार लोगों ने आतिशबाजी की शुरूआत जल्दी कर दी थी। रात के दस बजे तो लगा कि अब पटाखों की आवाज थम जाएगी, लेकिन इसके विपरीत आतिशबाजी का शोर बढ़ता ही गया। रात 12 बजे के बाद तक भी आसमानी पटाखों की गूंज सुनाई देती रही। इसे रोकने के लिए पुलिस प्रशासन ने मास्टर प्लान तो बनाया था। शहर से लेकर कस्बों और गांवों तक में पुलिस मुस्तैद की गई थी, लेकिन कहीं किसी को टोकने तक का साहस नहीं दिखाया गया। देर रात तक हुई आतिशबाजी से यह बात तो साफ हो गई कि दीपावली जैसे पर्वो पर पटाखों को रोक पाना इतना आसान नहीं है। प्रबुद्ध वर्ग का मानना है कि अगर हानिकारक पटाखों के बनाने पर अंकुश लगाया जाए तो शायद बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सकेगा। बहरहाल, दीप पर्व पर इस बार भी जमकर देर रात तक आतिशबाजी हुई। पटाखों की बिक्री पर जरूर रहा अंकुश

दीपावली से पहले रसूलपुर गांव में आतिशबाजी के कारखाने में हुए विस्फोट से नौ लोगों की मौत होने के कारण पटाखों की बिक्री पर जिला प्रशासन ने जरूर अंकुश लगाया था। शहर से लेकर कस्बों तक निर्धारित सुरक्षित स्थानों पर ही पटाखों की बिक्री की गई। गली-मुहल्लों और परचूनी की दुकानों पर खुलेआम आतिशबाजी की बिक्री नहीं होने दी गई। इसके बावजूद पटाखा छोड़ने में कहीं कोई कमी नहीं आई।


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