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कठपुतली से कहानी को जीवंत कर बच्चों को पढ़ा रहीं दीपिका

सामान्य रूप से कक्षा में किताब से बच्चों को पढ़ाने पर 25 प्रतिशत ही समझ पाते हैं जबकि जीवांत रूप देकर पढ़ाया जाए तो एक ही बार में शतप्रतिशत याद हो जाता है। किताबों के ज्ञान को बच्चों को आसानी से सिखाने को ऐसी ही एक प्रक्रिया शुरू की है विकास क्षेत्र सालारपुर के प्राथमिक विद्यालय बनगवां में तैनात शिक्षिका दीपिका जैन ने। जो विलुप्त हो चुकी कठपुतली की कला के माध्यम से किताबों की कहानियों को सजीव जैसा बनाकर बच्चों को पढ़ा रही हैं। इससे बच्चों में सीखने की ललक पैदा हो रही है और विद्यालय में हर रोज तकरीबन 90 प्रतिशत से ज्यादा उपस्थिति रहती है। शासन स्तर पर उनके इस नवाचार की सराहना हुई। राज्य स्तर पर हुई प्रतियोगिता में उन्हें सम्मानित किया गया। जो जिले के शिक्षक-शिक्षिकाओं की पहली उपलब्धि है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Aug 2019 06:22 PM (IST)Updated: Tue, 27 Aug 2019 06:22 PM (IST)
कठपुतली से कहानी को जीवंत कर बच्चों को पढ़ा रहीं दीपिका
कठपुतली से कहानी को जीवंत कर बच्चों को पढ़ा रहीं दीपिका

सरोकार-सुशिक्षित समाज :: फोटो 27 बीडीएन 13, 14, 15 - विलुप्त हो चुकी कला से बच्चों को याद कराती हैं विषय

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- घर के अलावा दूसरों से भी मांग लेतीं अनुपयोगी सामान

जागरण संवाददाता, बदायूं: सामान्य रूप से कक्षा में किताब से बच्चों को पढ़ाने पर 25 प्रतिशत ही समझ पाते हैं जबकि जीवांत रूप देकर पढ़ाया जाए तो एक ही बार में शतप्रतिशत याद हो जाता है। किताबों के ज्ञान को बच्चों को आसानी से सिखाने को ऐसी ही एक प्रक्रिया शुरू की है विकास क्षेत्र सालारपुर के प्राथमिक विद्यालय बनगवां में तैनात शिक्षिका दीपिका जैन ने। जो विलुप्त हो चुकी कठपुतली की कला के माध्यम से किताबों की कहानियों को सजीव जैसा बनाकर बच्चों को पढ़ा रही हैं। इससे बच्चों में सीखने की ललक पैदा हो रही है और विद्यालय में हर रोज तकरीबन 90 प्रतिशत से ज्यादा उपस्थिति रहती है। शासन स्तर पर उनके इस नवाचार की सराहना हुई। राज्य स्तर पर हुई प्रतियोगिता में उन्हें सम्मानित किया गया। जो जिले के शिक्षक-शिक्षिकाओं की पहली उपलब्धि है। नवंबर 2015 को ज्वाइन करते समय विद्यालय का पंजीकरण 65 था। न तो उपस्थिति सही रहती थी और न ही बच्चों का ठहराव था। विचार आया कि घर पर माता-पिता की दी जानकारी और रूचि के अनुसार बच्चों को शिक्षित किया जाए तो कुछ बदलाव हो सकता है। कठपुतली व पपेट्री का सहारा लिया। भाषा, हमारा परिवेश, विज्ञान आदि विषयों के लिए कठपुतली व पपेट का प्रयोग करती हैं। पर्दे के पीछे से कठपुतली को चलाती हैं और कहानी सुनाती हैं। चित्र के रूप में दिखाने पर बच्चों का मनोरंजन होता है और खेल-खेल में वह विषय आसानी से याद कर लेते हैं। जैसे राजकुमारी की कहानी के लिए एक सुंदर हैं और हाथ में छड़ी देकर आवाज निकालती हैं। इंसेट..

घर की व्यर्थ चीजों को संजोकर बनाती हैं कठपुतली

बच्चों को सिखाने के लिए घर की व्यर्थ की चीजों को संजोकर रख लेती हैं। जिसे कठपुतली व पपेट्री बनाने के लिए काम में लाती हैं। पुराने कागज, शादी के कार्ड के अलावा पास टेलर से कपड़ों की कतरन मांगने में भी नहीं हिचकिचातीं। जिससे वह शेडो पपेट, शॉक्स पपेट, फिगर पपेट, धागा पपेट, मास्क पपेट आदि बनाती हैं। विद्यालय में महीनों तक रही है शत-प्रतिशत उपस्थिति

शिक्षिका व प्रधानाध्यापक मयंक गुप्ता बच्चों के अनुपस्थित होने पर उनके घर जाते हैं और बुलाकर विद्यालय लाते हैं। इसका फल यह है कि परिषदीय विद्यालय होने के बाद भी पिछले सत्र में 111 दिन और उससे पिछले सत्र में 145 दिन लगातार बच्चों की शत-प्रतिशत उपस्थिति रही।


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