तब पत्थर बरसाकर मनाते थे दीपावली
दीपावली पर लोग दीप जलाते हैं। ईश्वर का पूजन करते हैं। आतिशबाजी चलाते हैं।
फैजगंज बेहटा (बदायूं) : दीपावली पर लोग दीप जलाते हैं। ईश्वर का पूजन करते हैं। आतिशबाजी चलाते हैं। जिले के फैजगंज बेहटा में पांच साल पहले तक अनूठी, लेकिन ¨हसा से सराबोर परंपरा थी। यह थी पत्थरमार दीपावली। दीपावली से ठीक एक दिन पहले जमदिया के दिन दो गांवों के लोग एक जगह पर आकर एक दूसरे पर लाठी और पत्थर बरसाते थे। पुलिस ने यह कुप्रथा भले ही बंद करा दी हो, लेकिन रवायत के नाम पर कुछ लोग अब भी इससे जिंदा करने की कोशिश करते हैं। इसे रोकने के लिए पुलिस ने दोनों गांवों के दर्जनों लोगों को मुचलका पाबंद किया है।
पहले बरसाते थे पत्थर, फिर मिलते थे गले
यह परंपरा न तो रंजिश थी और न ही कब्जे की जंग। छोटी दिवाली (जमदिया) के दिन फैजगंज और बेहटा गांव के लोग दोपहर में गांव के बाहर मैदान में पहुंचते थे। आमने-सामने आकर पत्थर, लाठी-डंडे से वार करते थे। हालांकि, इसमें बहुत से लोग घायल भी हो जाते थे, लेकिन कोई गिला-शिकवा नहीं होता था। शाम को लोग एक दूसरे के घर जाकर गले लगते थे। पर्व की शुभकामनाएं देते थे। खास बात मजहब का बैर नहीं था। हिंदू-मुस्लिम दोनों ही शामिल होते थे।
तत्कालीन एसएसपी ने बंद कराई थी कुप्रथा
पांच साल पहले तत्कालीन एसएसपी ने ¨हसा से भरी कुप्रथा बंद कराई थी। लोगों ने जमकर विरोध किया था। दोनों गांवों में एक दिन पहले ही भारी फोर्स, पीएसी लगा दी थी। दोबारा यह आयोजन न हो, इसलिए पुलिस चौकन्ना है। गांव बसाने की जंग से शुरू हुई थी कुप्रथा
दशकों पुरानी इस कुप्रथा की शुरुआत के बारे में दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हैं। बुजुर्गो से बातचीत में पता चलता है कि इसकी शुरुआत गैरआबाद गांव गंगापुर यानी फैजगंज को बसाने को लेकर हुई थी। मुरादाबाद-फरुखाबाद मार्ग पर उत्तर दिशा में बसे मिर्जापुर बेहटा गांव के लोग फैजगंज को बसाने के खिलाफ थे, जबकि फैजगंज वाले इसके लिए प्रयासरत थे। तब मिर्जापुर के लोगों ने जंग लड़ने की शर्त रखी। जीते तो गांव बस जाएगा। जमदिया के दिन सूर्यास्त तक पत्थर, लाठी चले। जीत होने पर फैजगंज बसा। तब से यह रवायत बन गई। वर्जन..
दोनों गांवों में निगरानी रखी जा रही है। दर्जनों लोगों को मुचलका पाबंद किया है। खुराफाती तत्वों पर भी पैनी नजर है। ¨हसा की ऐसी परंपरा दोबारा नहीं शुरू होने दिया जाएगा।
- इंद्रेश कुमार, एसओ, फैजगंज बेहटा