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50 दिन में 32 नवजातों की मौत, कारण जानने पहुंचे जेडी

महिला अस्पताल के एसएनसीयू में फैले संक्रमण से हो रही नवजातों की मौत के प्रकरण में जांच शुरू हो गई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 07:31 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 07:31 PM (IST)
50 दिन में 32 नवजातों की मौत, कारण जानने पहुंचे जेडी
50 दिन में 32 नवजातों की मौत, कारण जानने पहुंचे जेडी

फोटो - 12 बीडीएन - 17 - महिला अस्पताल के एसएनसीयू में फैला संक्रमण

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- एक डॉक्टर के भरोसे व्यवस्थाएं, संसाधन भी पूरे नहीं जागरण संवाददाता, बदायूं : महिला अस्पताल में बने एसएनसीयू में 50 दिन में 32 नवजातों की मौत होने का मामला जब शासन स्तर पर पहुंची तो खलबली मच गई। नवजातों की मौत कैसे हुई, यह जानने और व्यवस्थाएं परखने के लिए संयुक्त निदेशक स्वास्थ्य डॉ. हरीश चंद्रा सोमवार को टीम लेकर बदायूं पहुंचे। उन्होंने एसएनसीयू का मुआयना किया। इस दौरान बच्चों की लगातार हो रही मौत की वजह भी तलाशी। साथ ही यहां मौजूद अधूरे स्टाफ व संसाधनों की रिपोर्ट शासन को भेजने का फैसला लिया है। करीब दो घंटे तक गहन पड़ताल के बाद जेडी यहां से रवाना हो गए।

जिला महिला अस्पताल में बने एसएनसीयू में 20 दिन में 18 बच्चों की मौत का मामला हाल ही में सामने आया था। वहीं पिछले दिनों में कई नवजातों ने अलग-अलग तारीखों में दम तोड़ दिया था। एसएनसीयू संक्रमित होने के कारण यह स्थिति बन रही थी। नवजातों की मौत की वजह तलाशने के लिए जेडी तीन सदस्यीय टीम के साथ यहां पहुंच गए। टीम में बरेली जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ भी शामिल थे। पड़ताल में मालूम हुआ कि 50 दिन में 258 बच्चे यहां भर्ती हुए थे। इनमें 32 की मौत हुई है। सीडीओ ने भी जताई नाराजगी

- सीडीओ निशा अनंत रविवार रात लगभग नौ बजे यहां पहुंची थीं। कुछ बच्चों की हालत खराब थी और डॉक्टर नदारद थे। सीडीओ रात करीब दो बजे तक एसएनसीयू में बैठी रहीं। उन्होंने भी नवजातों की मौत का आंकड़ा एकत्र किया। जानकारी पर पता लगा कि डॉक्टर अहमद अली यहां से पिछले दिनों जा चुके हैं। डॉ. अनीस चावला पांच दिन रात की ड्यूटी करते हैं और पांच दिन अवकाश पर रहते हैं। केवल एक ही डॉक्टर संदीप वाष्र्णेय यहां तैनात बचे हैं, जो दिन और रात के वक्त बच्चों का इलाज कर रहे हैं। स्टाफ भी कम है। सीडीओ ने पूरी जानकारी डीएम को भेजी है। अधिकांश बच्चे कम दिनों के हुए पैदा

- जेडी ने बताया कि मरने वाले बच्चों की केस स्टडी की तो पता लगा कि इनमें अधिकांश ऐसे थे जो कम वक्त में पैदा हो गए थे। वहीं निजी अस्पतालों में प्रसव के बाद भी गंभीर हालत में बच्चे यहां लाए गए थे। कुछ बच्चों की हालत गंभीर होने के बाद भी परिजनों द्वारा रेफर को तैयार न होना भी मौत की वजह बना है। जेडी ने बताया कि स्टाफ और संसाधन कम हैं, इसकी रिपोर्ट बनाकर शासन को भेजी जाएगी। एसी बंद, हाथ से पंखा झुला रहीं महिलाएं

- जेडी के मुआयने के दौरान भी एसएनसीयू के स्टेप डाउन वार्ड में एसी बंद था और महिलाएं अपने भर्ती बच्चों की गर्मी में हाथ के पंखे से हवा कर रही थीं। वहीं उसावां के गांव पीतमनगला निवासी शिल्पी पत्नी मलखान का नवजात भी एसएनसीयू में भर्ती था। परिजन इस बात को लेकर हंगामा कर रहे थे कि उनके बच्चे के बेड पर कोई अन्य बच्चा नहीं भर्ती किया जाए। जबकि स्टाफ का कहना था कि किसी भी बच्चे को निकाला नहीं जा सकता। नतीजतन वहां काफी देर तक नोकझोंक होती रही।

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