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'हंसुली' में दिखा पारिवारिक रिश्तों पर भौतिकता का रंग

हंसुली में दिखा सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों पर भौतिकता का रंग

By JagranEdited By: Published: Thu, 26 Dec 2019 08:09 PM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 06:03 AM (IST)
'हंसुली' में दिखा पारिवारिक रिश्तों पर भौतिकता का रंग
'हंसुली' में दिखा पारिवारिक रिश्तों पर भौतिकता का रंग

जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : हुनर संस्थान द्वारा वेस्ली इंटर कालेज परिसर में आयोजित पांच दिवसीय रंग महोत्सव के पहले दिन जनपद के नाट्य दल समूहन कला संस्थान द्वारा लोकप्रिय नाटक हंसुली का मंचन किया गया। कहानीकार डा. अखिलेश चंद्र की कहानी पर आधारित व नाट्य निर्देशक राजकुमार शाह द्वारा निर्देशित और रूपांतरित नाट्य आलेख उन सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों पर भौतिकता के रंग को दर्शाता है जिससे आज परिवार में आपसी रिश्ते तार-तार हो रहे हैं।

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नाटक इस बात को उकेरने में कामयाब रहा कि रिश्ते निभाने के नहीं, बल्कि दिखाने भर रह जाते हैं। अधिकार के लिए होने वाली नोक-झोंक तकरार में बदल जाती है और निजी स्वार्थ के आगे पारिवारिक रिश्ते बिखर जाते हैं और यहां तक कि जन्म देने वाले मां-बाप को भी अहमियत नहीं दी जाती। घर-आंगन, खेत-खलिहान के ही टुकड़े नहीं होते, बल्कि परिवार के आपसी रिश्ते और प्रेम भी टुकड़े हो जाते हैं। प्रस्तुति अपनी जड़ों से उखढ़ जाने के नतीजों के प्रति आगाह करती है।

बांके की भूमिका में आशीष पांडेय और माया की भूमिका में सुमन भारती ने दमदार अभिनय किया। वाद्य पर गौरव शर्मा और सूरज विश्वकर्मा ने साथ दिया। मंच पर रिम्पी वर्मा, प्रियंका विश्वकर्मा, शशिबाला, अजय उपाध्याय, श्याम कुमार, शैलेश राजभर, सूरज विश्वकर्मा, रामजनम प्रजापति एवं स्वयं निर्देशक राजकुमार शाह ने बेहतर अभिनय किया। अंशिका यादव का अतिरिक्त ध्वनि प्रभाव और अंशिका पांडेय की कोरियोग्राफी सुंदर रही। कहानीकार अपने कथ्य में भारतीय परिवारों में भौतिकता के कारण आई मूल्यों की गिरावट को सहज ढंग से उजागर करता है तो वहीं नाट्य रूपांतरकार और निर्देशक इस विचार को एक कदम और आगे ले जाकर वर्तमान में उच्च शिक्षा और उच्च अर्थोपार्जन के लिए घर से दूर होने, संस्कारों और मूल्यों को खो देने की संवेदनहीनता को बड़ी सु²ढ़ता से रेखाकित करता है। वह अपनी जड़ों से उखढ़ जाने के नतीजों के प्रति आगाह करते हुए कहता है कि अपनी जड़ों को कसकर पकड़ लो, यह समय की नहीं, समझ की बात है।

इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए जिलाधिकारी नागेंद्र प्रसास सिंह ने कहा कि आजमगढ़ को जितना मैंने देखा है उसमें यह पाया है कि यह सर्जना, साहित्य, संघर्ष एवं शहादत की धरती है। कला और संस्कृति की अच्छी फसल उगाने को यहां पर अच्छे बीज भी हैं और यहां की भूमि भी उर्वरा है। बस जरूरत है एक अच्छा वातावरण देने की। रंग महोत्सव जैसे आयोजन ही यह वातावरण दे सकते हैं जिससे कि कला व संस्कृति की फसल लहलहाने लगेगी। विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे देश में प्राकृतिक और भौगोलिक विविधता है जिसके प्रभाव से देश में सांस्कृतिक विविधता भी है। सभी स्थानों की कला और संस्कृति को एक साथ रख दिया जाए तो यह भारतीय संस्कृति रूपी एक गुलदस्ता तैयार हो जाता है।


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