ब्याहन चलेने राम अउर लछिमन, कगवा बोलेला एक बोल..
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जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : 'ब्याहन चलेने राम अउर लछिमन, कगवा बोलेला एक बोल, कहें रामजी विचारा हे लछिमन कवन गुन बोलत बाय'। इस तरह के गीतों से गूंज रहा था तमसा नदी के किनारे राजघाट का वातावरण। शमशान घाट का नजारा शनिवार को रोज से काफी अलग दिख रहा था। यहां आम दिनों में होता है दाह संस्कार लेकिन साल में एक दिन लगता है वृहद मेला। मेले में शहर के अलावा आसपास के कई गांवों के लोगों की भीड़ रही। यहां पहुंचने वाले लोगों ने सबसे पहले तमसा नदी के पानी से खुद को शुद्ध किया और उसके बाद पुष्पमाला, कच्ची खिचड़ी, बताशा के साथ संतों की समाधि पर शीश झुकाया।
सैकड़ों साल से लगने वाले इस मेले के इतिहास के बारे में तो लोग नहीं जानते लेकिन यहां की विशेषता यह है कि कृष्ण और बलदाऊ की बाल रूप प्रतिमाएं बिकती हैं। मेले में आने वाले कुछ खरीदें या न खरीदें लेकिन अपने घर इन प्रतिमाओं को जरूर ले जाते हैं और साल भर पूजा करते हैं। यहां के पांच दिन बाद गोविद दशमी का मेला शुरू होता है।
मेले में श्रृंगार सामग्री, चोटहिया जलेबी, चाट-पकौड़ी से लेकर घरेलू उपयोग के सामानों की दुकानें लगी हुई थीं। हर कोई अपनी जरूरत के सामानों की खरीददारी कर रहा था। उधर सुबह से सजे मंडप में शाम होने के बाद श्रीराम के साथ माता जानकी के विवाह की रस्म पूरी की गई। इसमें जनक की भूमिका गोपाल जी तो दशरथ की भूमिका जयमाल दास उर्फ नाटे मिस्त्री ने निभाई। विवाह की रस्म विभूति उपाध्याय ने पूरी कराई।
श्रीराम-जानकी विवाहोत्सव में ऐसा लगा कि मानों हकीकत में विवाह की रस्म पूरी की जा रही है। एक ओर वर और कन्या पक्ष तो दूसरी ओर एक किनारे आसपास की महिलाएं मंगल गीत गा रही थीं। गीत में भगवान राम की महिमा का बखान किया जा रहा था। महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत 'भगति में अइने भगवान हो सबरी के घरवां, पूस की चटइया झार के बिछवनीं, भोगवा लगावें भगवान हो सबरी के घरवां। जूठी बेरिया तोरी भोगवा लगावें, भोगवा लगावें भगवान हो सबरी के घरवां'''' सुनकर हर कोई भाव-विभोर हो गया।