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सरेआम चौक पर फूंक दी थी अंग्रेजों की पेट्रोल भरी लारी

आजमगढ़ : 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बज चुका था। डू-ऑर-डाई (करो या

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Aug 2018 05:44 PM (IST)Updated: Tue, 07 Aug 2018 05:44 PM (IST)
सरेआम चौक पर फूंक दी थी अंग्रेजों की पेट्रोल भरी लारी
सरेआम चौक पर फूंक दी थी अंग्रेजों की पेट्रोल भरी लारी

आजमगढ़ : 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बज चुका था। डू-ऑर-डाई (करो या मरो) के साथ क्रांतिकारी आजादी की जंग लड़ रहे थे। आंदोलन की ज्वाला तेज हो चुकी थी जिसका गवाह शहर का मुख्य चौक भी है जहां 16 अगस्त की रात सरेआम चौक पर अंग्रेजों की पेट्रोल भरी लारी फूंक दी गई थी।

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16 अगस्त की रात नौ बजे शहर के मुख्य चौक पर सहसा एक लारी आकर खड़ी हुई जिसमें पेट्रोल से भरे पांच ड्रम रखे थे। रेलवे यातायात के बंद हो जाने से सशस्त्र सैनिकों के संरक्षण में पेट्रोल भरी लारी को इलाहाबाद से गोरखपुर के लिए भेजा गया था। लारी के ड्राइवर और उसकी सुरक्षा में लगे सैनिकों ने भोजन करने के उद्देश्य से भोजनालय की जानकारी करनी चाही। उन्होंने वहां मौजूद परमेश्वरी लाल गुप्ता, श्यामबहादुर लाल और धर्मवीर ¨सह आदि से पूछा तो उन्होंने बातों ही बातों में लारी व उस पर रखे पेट्रोल की पूरी जानकारी हासिल कर ली। इन लोगों ने विद्यासागर उपाध्याय और सभापति उपाध्याय की चौक क्षेत्र में स्थित भोजनालय की खूब तारीफ की। इसी बीच सभापति उपाध्याय को सामने देखकर लारी वालों को अपने भोजनालय में ले जाकर भोजन कराने का इशारा किया। जब ड्राइवर सहित लारी की सुरक्षा में लगे सभी सैनिक भोजन के लिए पहली मंजिल पर स्थित भोजनालय में गए तो उसी बीच लारी को नष्ट करने की योजना बनाई गई। कुछ ने तुरंत ही लारी के टायर में चाकू घोंपकर उसे पंक्चर कर दिया। कई ने लारी पर चढ़कर पेट्रोल के ड्रम ढक्कन खोलने का प्रयास किया। जब वे सफल नहीं हुए तो सभापति उपाध्याय ने लारी में चढ़कर सभी ड्रमों को ढकेल कर नीचे गिराना शुरू किया। उसके बाद सभी ड्रमों में ईट व लोहे के टुकड़ों से गहरा प्रहार कर कीलें ठोंकी गई जिससे सारा पेट्रोल 10 से 15 मिनट के अंदर बहकर नालियों में चला गया। इसके बाद खाली ड्रमों को भी चौक से पूरब कालीनगंज वाली सड़क से ले जाकर गड्ढों में ढकेल दिया। ..और जब जलने से बच गया शहर

चौक से बहने वाले पेट्रोल जिस समय सड़क की गहरी नालियों से होकर कालीनगंज की ओर बहते जा रहे थे, उसी समय कौतूहलवश किसी ने उसमें दियासलाई (माचिस) खुरच कर फेंक दी। फिर तो उस नए तमाशे ने कुछ ही समय में भयंकर रूप धारण कर लिया। इससे नगर के जलने की आशंका हो गई लेकिन कुशल इतनी हुई कि पेट्रोल की तेज लपटें किसी दुकान तक नहीं पहुंच सकीं। इसी बीच बारिश होने के कारण आग अपने आप ठंडी हो गई। सीआइडी इंस्पेक्टर की सलाह पर सैनिकों की बची जान

भोजन करके उतरने वाले सैनिकों ने जब भोजनालय के दक्षिणी मार्ग से नीचे उतर कर लारी तक पहुंचना चाहा तो उन्हें चौक पर रहने वाले मुश्ताक अहमद सीआइडी इंस्पेक्टर ने लारी कांड के बारे में बताते हुए अपनी बंदूकों को वहां से सही सलामत लेकर कोतवाली चले जाने का आग्रह किया। अंग्रेज सैनिक इंस्पेक्टर की सलाह मानकर खतरे से बचते हुए कोतवाली को ओर चले गए।


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