अंग्रेजी हुकूमत के दमन से अछूते नहीं रहे पार्टी कार्यालय
आजमगढ़ : 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का शंखनाद हो चुका था। करो या मरो के नारे के साथ देशव
आजमगढ़ : 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का शंखनाद हो चुका था। करो या मरो के नारे के साथ देशवासी अंग्रेजी हुकूमत का उखाड़ फेंकने पर कुछ भी करने पर आमादा हो गए थे। जगह-जगह गिरफ्तारियां हो रहीं थीं। यही कारण रहा कि आंदोलन की धार और भी तेज होती जा रही थी। देश भर में आंदोलन के भयंकर भूचाल से अंग्रेजी हुक्मरानों की हवाइयां उड़ने लगीं थीं। ऐसे में अब उनके द्वारा दमनकारी नीति अपनाई जाने लगी थी। यहां तक कि अब कार्यालयों को निशाना बनाया जाने लगा जहां आंदोलनकारी रणनीति बनाया करते थे। 1942 के अगस्त क्रांति का गवाह है कभी शहर के पहाड़पुर में मौजूद रहा जिला कांग्रेस कार्यालय।
उस समय खाद्य समस्या से जिले में काफी परेशानी थी जिसका भयंकर प्रभाव शहर पर पड़ रहा था। नतीजा इस समस्या को सुलझाने के लिए जिलाधिकारी निबलेट की अध्यक्षता में एक सरकारी समिति बनी थी लेकिन उसमें दोष और दुर्विचार इतने बढ़ हुए थे कि बीमारी काबू से बाहर हो रही थी। इसी के संबंध में नगर का एक शिष्ट मंडल तत्कालीन नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भवानी प्रसाद एडवोकेट के नेतृत्व में नौ अगस्त को दिन में 10 बजे जिलाधिकारी से मिला। इस शिष्ट मंडल में पद्मनाथ ¨सह एडवोकेट, भगवती प्रसाद और पुरुषोत्मदास अंगूरिया भी थे। बातचीत होने के बाद शिष्ट मंडल दिन में 12 बजे वापस आ गया। इसके एक घंटे बाद ही दिन में करीब एक बजे जिलाधिकारी निबलेट ने पुलिस सुपरिटेंडेंट वींगफील्ड के साथ जिला कांग्रेस कार्यालय (गोशाला) पर सशस्त्र पुलिस बल लेकर धावा बोल दिया। उस समय केवल संतोषानंद मौजूद थे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और कार्यालय का सारा सामान लारी में भरकर भवन पर ताला लगा दिया गया। उसके बाद ताले की रक्षा के लिए संगीनधारी पुलिस का पहरा बैठाकर अधिकारी वापस चले गए। कार्यालय सामानों में जिला कांग्रेस कमेटी के सभी कागजात, रजिस्टर, फाइलें, पुस्तकें, स्वयंसेवक सेना की वर्दियां और बर्तन आदि तो पुलिस उठा ही ले गई। समाजवादी पार्टी के भी समस्त कागजात, रजिस्टर, रसीद, बहियां, डायरी और राष्ट्र सेवक संघ के सामान आदि जब्त कर लिए गए। कांग्रेस दफ्तर की तालाबंदी के बाद उसी दिन जनपद में सीताराम अस्थाना और सच्चिदानंद पांडेय भी गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिए गए। सीताराम अस्थाना उसी समय बीमारी के कारण काफी कमजोर होकर बिस्तर पर पड़े थे।फिर भी उसी दशा में उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। जिलाधिकारी की यह हरकत और लट्ठधारी पुलिस की चहल-पहल देखकर नगर की जनता आश्चर्यचकित हो गई। कहां तो शिष्टमंडल से भेंट वाली बातों के जानने की लोगों में उत्सुकता थी और कहां यह हो गया। ऐसा देखकर नगर का वातावरण बिल्कुल क्षुब्ध हो उठा। जिसे देखिए वही जिला कांग्रेस कमेटी के दफ्तर का तमाशा देखने जाता दिखाई पड़ा। इस घटना से स्पष्ट हो गया था कि जिलाधिकारी निबलेट ने अंग्रेजी हुकूमत से प्राप्त दमनात्मक आदेश का तनिक भी आभास शिष्टमंडल को नहीं होने दिया बल्कि उल्टे स्वयं कांग्रेस द्वारा हड़ताल करवाने की जानकारी चाही थी।