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चला ठीके हौ, अबकी मंगर रही ..

स्कूल कालेजों में होली ने दस्तक दे दी है और उसी के साथ हो गई बच्चों की छुट्टी। अब वे दोस्तों संग पर्व की तैयारी में लग गए हैं तो वहीं घर के जिम्मेदारों की जिम्मेदारों की बारी भी आ गई होली की तैयारी को लेकर। घर से लेकर चौपाल तक होली को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है। किसी को परिवार के लिए कपड़ा खरीदने की चिता तो किसी को गुझिया के लिए खोवा के जुगाड़ की। सबकी चिता अलग-अलग लेकिन हुड़दंग पर सबकी चिता एक। होली पर खाने-खिलाने और पीने-पिलाने

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Mar 2020 05:12 PM (IST)Updated: Sat, 07 Mar 2020 05:12 PM (IST)
चला ठीके हौ, अबकी मंगर रही ..
चला ठीके हौ, अबकी मंगर रही ..

स्कूल कालेजों में होली ने दस्तक दे दी है और उसी के साथ हो गई बच्चों की छुट्टी। अब वे दोस्तों संग पर्व की तैयारी में लग गए हैं तो वहीं घर के जिम्मेदारों की जिम्मेदारों की बारी भी आ गई होली की तैयारी को लेकर। घर से लेकर चौपाल तक होली को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है। किसी को परिवार के लिए कपड़ा खरीदने की चिता तो किसी को गुझिया के लिए खोवा के जुगाड़ की। सबकी चिता अलग-अलग लेकिन हुड़दंग पर सबकी चिता एक। होली पर खाने-खिलाने और पीने-पिलाने का प्रचलन तो बहुत पुराना है लेकिन उसका स्वरूप अब काफी बदल चुका है। पहले गुझिया के साथ ठंडई का दौर चलता था लेकिन अब नानवेज के साथ शराब का और उसका नतीजा कभी-कभी ऐसा होता है कि परिवार से लेकर गांव का माहौल खराब हो जाता है। त्योहार की खुशियां काफूर हो जाती हैं जब परिवार का कोई सदस्य नशे में चूर होकर सो जाता है।

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गांव में लगी चौपाल में भी बाताकही के केंद्र में इस समय यही मुद्दा छाया है।

एक बुजुर्ग ने कहा कि पहले ठीक था। गांव में होली पर गवइयों की टोली होती थी जो घर-घर जाकर जोगीरा गाती थी और लोग ठंडई पिलाने के साथ रंगों की बारिश करते थे लेकिन अब तो किसी को अपने से फुर्सत ही नहीं है। माहौल भी पहले वाला नहीं रहा, कब किस बात पर कोई नाराज हो जाए, कहा नहीं जा सकता। तभी वहां बैठे चाचा ने कहा कि कहीं कुछ खराब नहीं हुआ है, आज के लोगों की सोच खराब हो गई है। कम से कम त्योहार पर तो ऐसी चीज का इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए जिसे हर कोई पसंद न करता हो लेकिन क्या करें, नौजवान तो कुछ सुनने और समझने के लिए तैयार ही नहीं होते। अरे अब तो यह स्थिति आ गई है कि जिसके घर में नानवेज नहीं बनता उनके यहां भी लड़के घर के बाहर बनाकर खाते और खिलाते हैं। कुछ नहीं तो दूसरे के घर दावत पर चले जाते हैं। लौटकर आते हैं तो सो जाते हैं, उन्हें तो समझ ही नहीं कि होली रात भर मिलने-मिलाने का त्योहार है। त्योहार को लेकर मंथन चल रहा था, हुड़दंगई की चर्चा हो रही थी कि लंबी सांस लेते हुए एक बुजुर्ग ने कहा कि 'अबकी ज्यादा चिता के बात ना हौ, अबकी त होली के मंगर रही..।'

- नागरिक


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