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नेताजी के सहयोगी कर्नल निजामुद्दीन को न मिली पेंशन और न ही सेनानी का दर्जा

सुभाषचंद्र बोस के ड्राइवर रहे आजमगढ़ के ढकवा मुबारकपुर निवासी कर्नल निजामुद्दीन को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का न दर्जा मिला और न ही कोई सरकारी सुविधा ही।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Thu, 06 Jun 2019 06:21 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jun 2019 07:00 PM (IST)
नेताजी के सहयोगी कर्नल निजामुद्दीन को न मिली पेंशन और न ही सेनानी का दर्जा
नेताजी के सहयोगी कर्नल निजामुद्दीन को न मिली पेंशन और न ही सेनानी का दर्जा

आजमगढ़ [अनिल मिश्र]। दुनिया के सबसे बुजुर्ग व्यक्तियों में शुमार, आजाद हिंद फौज के सिपाही और नेता जी सुभाषचंद्र बोस के ड्राइवर रहे आजमगढ़ के ढकवा मुबारकपुर निवासी कर्नल निजामुद्दीन को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का न दर्जा मिला और न ही कोई सरकारी सुविधा ही। उनकी अंतिम इच्छा पर शासन को भेजी गई पेंशन फाइल भी जाने कहां दब गई और एक दिन ऐसा आया कि वह दुनिया को ही अलविदा कहकर चल बसे। 

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कर्नल निजामुद्दीन और उनकी पत्नी अजबुन्निशा की इच्छा पर उनके छोटे पुत्र मु. अकरम ने वर्ष 2016 में तत्कालीन जिलाधिकारी सुहास एलवाई से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने माता-पिता की अंतिम इच्छा से अवगत कराया। जिला ही नहीं देश की धरोहर मानते हुए तत्कालीन डीएम ने प्रमुख सचिव पेंशन अनुभाग से बात की। आश्वासन पर कर्नल निजामुद्दीन के बारे में स्थानीय खुफिया एजेंसी (एलआइयू) और तहसील प्रशासन ने रिपोर्ट तैयार की।

उसके बाद पेंशन के लिए फाइल प्रमुख सचिव राजनीतिक पेंशन और डिप्टी सचिव को भेज दी गई थी, लेकिन उसके बाद आजाद हिंद फौज के सिपाही के पेंशन फाइल किसी आलमारी में कैद हो गई, पता नहीं चला। स्वतंत्रता संग्राम का दर्जा मिलना तो दूर की बात, पेंशन का इंतजार करते-करते एक साल बाद कर्नल निजामुद्दीन का छह फरवरी 2017 और उसके बाद उनकी पत्नी अजीबुन्निशा का भी इंतकाल 23 मई 2018 को हो गया। आजमगढ़ एडीएम प्रशासन नरेंद्र सिंह ने कहा कि कर्नल निजामुद्दीन की पेंशन फाइल के संबंध में मुझे कोई जानकारी नहीं है। पूर्व में यदि कोई फाइल शासन को भेजी गई थी, तो उसके संबंध में पता कराते हैं।

मोदी ने कर्नल से लिया था आशीर्वाद

2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी की एक जनसभा के दौरान कर्नल निजामुद्दीन का सम्मान किया था। उनका पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया था। उस समय आजाद हिंद फौज के सिपाही ने उन्हें जीत और उसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनने का भी आशीर्वाद दिया था।

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