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-बैंक में पड़ी मेहनत की कमाई, नागरिक उधारी से चला रहा काम..

अनलॉक-वन लागू हो चुका है। देश फिर से अर्थ व्यवस्था को रफ्तार देने दौड़ पड़ा है। नागरिक भी घर से बचते-बचाते निकल पड़ा कि चलो बैंक से कुछ रुपये निकाल लाता हूं। उचित भी कि प्रधानमंत्री ने कह रखा है कि कोरोना से लड़ाई लंबी चलेगी। इसके बीच में रहकर लड़ते हुए हमें आगे बढ़ना है। नागरिक चेहरे पर मुस्कुराहट लिए तेज कदमों से बढ़ते हुए शहर की एक बैंक शाखा पर पहुंचा। उसके मन में था बैंक के बाहर लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करूंगा। बैंक के करीब पहुंचा तो उसकी जुंबा से बोल फूटा कि अरे यहां ये क्या हो रहा ..।

By JagranEdited By: Published: Sat, 27 Jun 2020 05:16 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jun 2020 05:16 PM (IST)
-बैंक में पड़ी मेहनत की कमाई, नागरिक उधारी से चला रहा काम..
-बैंक में पड़ी मेहनत की कमाई, नागरिक उधारी से चला रहा काम..

अनलॉक-वन लागू हो चुका है। देश फिर से अर्थ व्यवस्था को रफ्तार देने दौड़ पड़ा है। नागरिक भी घर से बचते-बचाते निकल पड़ा कि चलो बैंक से कुछ रुपये निकाल लाता हूं। उचित भी कि प्रधानमंत्री ने कह रखा है कि कोरोना से लड़ाई लंबी चलेगी। इसके बीच में रहकर लड़ते हुए हमें आगे बढ़ना है। नागरिक चेहरे पर मुस्कुराहट लिए तेज कदमों से बढ़ते हुए शहर की एक बैंक शाखा पर पहुंचा। उसके मन में था, बैंक के बाहर लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार करूंगा। बैंक के करीब पहुंचा तो उसकी जुंबा से बोल फूटा कि अरे यहां ये क्या हो रहा ..। दरअसल, बैंक के बाहर तो सन्नाटा नजर आया। सोचा आज तो किसी तरह की बंदी भी नहीं फिर ऐसा क्यों? मन में सवाल लिए बैंक शाखा के करीब पहुंचा तो अंदर ग्राहकों की ठस्सम-ठस्स देख उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। सोचा इन्हें कोरोना से डर नहीं? उस शाखा से रुपये निकालने को कौन कहे नागरिक ने दहलीज के अंदर पैर रखना गंवारा नहीं समझा। सोचा किसी और शाखा रुपये निकालूंगा। यही सोच मन में लेकर उसी बैंक की दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं समेत कई शाखाओं में भ्रमणशील रहते दोपहर के एक बज गए। बैंक शाखाओं में टूट रहीं शारीरिक दूरियों ने उसे रुपये निकालने से रोक दिया। सोचा चलो कोर बैंकिग का जमाना है, किसी दूसरे बैंक से रुपये निकाल लूंगा। घर पहुंचा और बाइक निकाल चल पड़ा बैंक। शहर के बैंकों में निराशा हुई तो कस्बाई इलाकों का रुख कर लिया। शाम होने को आ गए, लेकिन रुपये नहीं निकाल सका। कई बैंक शाखाओं में तो अंदर व बाहर दोनों ही शारीरिक दूरियां टूट रहीं थीं। बैंक वालों से बात हुई तो बोले यहां शारीरिक दूरी का पालन कराना प्रशासन एवं पुलिस की जिम्मेदारी है। एक सलाह दे डाली कि एटीएम से रुपये निकाल लें, क्यों परेशान हैं। नागरिक सोचा चलो बैंक आ गया तो अपनी पासबकु अपडेट करा लेता हूं। मशीन के पास पहुंच कोशिश की तो पता चला कि खराब है। गार्ड ने बताया कि कोरोना के कारण हम एहतियात बरत रहे हैं। नागरिक सोचा चलो रुपये नहीं निकले तो कम से कम पासबुक अपडेट करा लूं। एक-दो बैंकों में पहुंचा तो वही कहानी, मशीन मृत प्राय मिली। एटीएम से प्रयास किया तो तीन-चार सेंटर पर करेंसी न होने की मुश्किल सामने आई। बाजार में घूमने के दौरान जेब खाली हो तो मनोदशा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। उसी पीड़ा से गुजर रहा नागरिक उधेड़-बुन में तेज रफ्तार शहर की ओर लौट रहा था। रास्ते में एक मित्र की नजर पड़ी तो उसे आवाज लगाई, नागरिक रुका तो एक सूचना ने उसे चौंका दिया। पता चला कि घर रिश्तेदार आए हैं। उनकी आवभगत को पत्नी इंतजार कर रहीं। चूंकि जेब खाली रही, लिहाजा नागरिक की धड़कनें तेज हो गई। मित्र तो मित्र ही होता है सो उसने नागरिक की मनोदशा को पलक झपकते ही पढ़ ली। मित्र कुछ बोल पाता, नगारिक कहने लगा बैंकों में शारीरिक दूरियों का पालन नहीं हो रहा। बैंक वाले जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहे। सरकार के आदेश को बड़े हाकिम नीचे वालों तक पहुंचाकर सो जा रहे, जमीन पर कोरोना इसीलिए तो बढ़ रहा। चूंकि नागरिक मूल बातों से जानबूझकर भटका रहा था, लिहाजा मित्र ने कहा कि मेरे यार मुझसे क्यों पीड़ा छिपा रहे। उसने पांच-पांच सौ के चार नोट नागरिक की जेब में डाल दी। नागरिक को अच्छा तो नहीं लगा, क्यों कि बैंक में उसके अपने रुपये पड़े थे, लेकिन फिर सोचा कि कोरोना के खतरे से खेलने के बजाए बुद्धिमानी तो इसी में है कि उधारी से कुछ दिनों तक काम चला लूं। ऐसा विचार मन में आते ही नागरिक ने अपने मित्र को धन्यवाद देने के साथ ही रुपये लौटाने का भरोसा देते हुए गाड़ी स्टार्ट की और अपने आशियानें की ओर बढ़ चला..।

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नागरिक।


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