रामानंद सरस्वती पुस्तकालय से ज्ञान संग संस्कार भी प्रवाहमान
आजमगढ़ : जनपद मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर स्थापित श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय पाठकों को नई दिशा जहां देर रहा है वहीं ग्रामीण परिवेश को शहरी परिवेश में बदलने की कोशिश में पूरी तरह से सफल भी है। यह पुस्तकालय तमाम लोगों को जहां रोजगार दे रहा है वहीं ग्रामीण प्रतिभाएं अपने हुनर की प्रतिभा का जलवा बिखेर रही हैं। अब यहां राष्ट्रीय व अंतराराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं और दिक्कत साहित्यकार शिरकत कर चुके हैं। पूर्व एडीजी बीएन राय की सोच पूरी तरह से सार्थक हो रही है।
आजमगढ़ : मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थापित श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय पाठकों को जहां नई दिशा दे रहा है, वहीं ग्रामीण परिवेश को शहरी बनाने की कोशिश में पूरी तरह से सफल भी है। यहां राष्ट्रीय-अंतराराष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। दिग्गज साहित्यकारों का यहां जमावड़ा लगता रहता है। पूर्व एडीजी बीएन राय की सोच पूरी तरह यहां सार्थक हो रही है।
श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना 27 मई 1993 को हुई थी। इसका उद्देश्य रखा गया था कि साधनहीन और बंटे हुए ग्राम समाज में परिवर्तन के लिए पढ़ने की संस्कृति विकसित करना। पिछले दो दशकों में पुस्तकालय अपने आरंभिक उद्देश्यों को विस्तार देते हुए इलाके की जीवन शैली बदलने के लिए अनेक मोर्चो पर सार्थक साबित हुआ। 15000 से अधिक किताबें एवं 250 से अधिक लघु पत्रिकाओं के सभी अंकों के संग्रह वाला यह पुस्तकालय साहित्य की विधा समेटे हैं। यह इलाका देश के सबसे पिछड़े इलाके के रूप में गिना जाता है। पुस्तकालय की निदेशक हिना देसाई ने यहां के लोगों के जीवन स्तर सुधारने के लिए स्वरोजगार के अवसरों को भी जोड़ा हैं। संस्था की संगोष्ठी और कार्यशालाओं से जनजागरूकता का माहौल बना है। इसमें समाज परिवर्तन की अंतहीन गूंज सुनाई देती है। केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के सहयोग से महिला सशक्तीकरण और रोजगार से जुड़ी है संस्था नई ऊर्जा का संचार पैदा कर रही है। लाइब्रेरियन सुधीर शर्मा हैं। किताबों को पढ़ने वालों की कमी नहीं : विभूति नरायन
पुस्तकालय के संस्थापक विभूति नरायन राय ने कहा कि किताबों का क्रेज अब भी बरकरार है। उनके पुस्तकालय पर प्रतिदिन 60 से 70 किताबें बाहर जाती हैं जो शाम तक वापस आ जाती है। अभी वह स्थिति प्रतिदिन जारी है। यहां दूरदराज से लोग आते हैं और पुस्तकालय में बैठकर अध्ययन करते हैं। कहा कि सोशल मीडिया का कुछ प्रभाव जरूर है, लेकिन जनसंख्या भी बढ़ी है। ऐसे में किताबों को पढ़ने वाले अब भी लोग हैं। सोशल मीडिया की अपनी अलग जगह है और किताबों की दुनिया अलग है।