गरीब महिलाओं की आवाज बन सशक्त कर रहीं 'साज'
आजमगढ़: अपने लिए तो सभी जी लेते हैं लेकिन दूसरों के लिए कुछ ऐसा कर जाएं जो एक मिसाल बन जाए। कुछ ऐसा ही पिछले दस वर्षों से कर रहीं हैं 'साज' फाउंडेशन की संचालिका डा. संतोष ¨सह।
आजमगढ़ : अपने लिए तो सभी जी लेते हैं लेकिन दूसरों के लिए कुछ ऐसा कर जाएं जो एक मिसाल बन जाए। कुछ ऐसा ही पिछले दस वर्षो से कर रहीं हैं 'साज' फाउंडेशन की संचालिका डा. संतोष ¨सह। घर के कबाड़खाने या आस-पास निष्प्रयोज्य पड़े सामान को आकर्षक रूप देकर बड़े घरों के डाय¨नग हाल की शोभा बनाया, बल्कि इसे एक रोजगार का रूप भी दे दिया। गरीब घरों की बेटियां व महिलाएं बिना पैसा खर्च किए सिर्फ हुनर से प्रतिमाह अच्छी खासी आमदनी कर रहीं हैं।
शहर के सिधारी मोहल्ले में रह रहीं डा. संतोष ¨सह ने इलाहाबाद से पालीटेक्निक से फैशन डिजाइन में डिप्लोमा किया। इसके बाद इलाहाबाद से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की। उनकी शादी जिले के ¨सहपुर जहानागंज निवासी डा. एके ¨सह से हुई। एक घरेलू महिला की ¨जदगी जी रहीं डा. संतोष ¨सह अपनी प्रतिभा का सदुपयोग आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में करने की सोची, वह भी जिसमें किसी प्रकार के रॉ-मैटेरियल की जरूरत न हो। उन्होंने नारी सशक्तीकरण की दिशा में महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए एक पहल की। ग्रामीण महिलाओं के हुनर को तराशने और उन्हें स्वावलंबी बनाकर आर्थिक समस्या से उबारने के लिए कार्य शुरू कर दिया। महिलाओं ने जूट, रद्दी पेपर, थर्माकोल, कपड़ा सहित कबाड़ आदि से कलाकृतियां बनाना शुरू किया। संस्था से जुड़ीं लगभग 500 महिलाएं प्रतिमाह लगभग 10 से 15 हजार रुपये की आय कर रहीं हैं। उनके द्वारा बनाए गए सामान की बिक्री के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया है। काफी संख्या में लोग कार्यशाला से ही कबाड़ से बने सामान ले जाते हैं।