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आर्थिक तंगी से कई खिलाड़ियों के समक्ष पढ़ाई का संकट

जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : जनपद में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां प्रतिभाओं की फेहरिस्

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Feb 2018 02:22 PM (IST)Updated: Sun, 25 Feb 2018 02:22 PM (IST)
आर्थिक तंगी से कई खिलाड़ियों के समक्ष पढ़ाई का संकट
आर्थिक तंगी से कई खिलाड़ियों के समक्ष पढ़ाई का संकट

जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : जनपद में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां प्रतिभाओं की फेहरिस्त है लेकिन केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा कोई विशेष सहयोग न मिलने की वजह से इनके उत्साह पर काले बादल छाए हुए हैं। अब जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने प्रोत्साहन देने का फैसला किया है, तो इससे खिलाड़ियों में आस जगी है। अगर ऐसा होता है तो जनपद की मिट्टी के खिलाड़ी देश व विदेश में जलवा बिखेर सकते हैं।

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सठियांव विकास खंड के लालसा कृषक इंटर कालेज नीबी मोहब्बतपुर में स्थित अखाड़े से अब तक दर्जनों महिला व पुरुष पहलवान निकल चुके हैं। इन खिलाड़ियों को सरकारी सुविधा व प्रोत्साहन न मिलने की वजह से यह पूरी तरह से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। अब तक इस अखाड़े से हीना यादव, सुषमा यादव, संगीता ¨सह, नेहा, सूर्यप्रकाश, संध्या पाल, किरन यादव, साबरमती मौर्य सहित दर्जनों पहलवान राष्ट्रीय स्तर पर अपना योगदान दे चुके हैं लेकिन इनके लिए सरकार की तरफ से कोई सुविधा प्रदान नहीं की गई। हां, यह जरूर है कि अखाड़े की पहलवान ज्योति यादव को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश ¨सह यादव प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित कर चुके हैं।

महिला खिलाड़ियों को सरकार की तरफ से सुविधा मिले तो इनका भविष्य जहां ऊंचाइयों पर पहुंचेगा वहीं समाज की नई धारा से जुड़ जाएगा। इसी प्रकार एथलेटिक्स, कबड़्डी, बैड¨मटन में भी कोई सुविधा नहीं मिल पाई है।

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महिला पहलवान ज्योति यादव को नहीं मिला मुकाम

:फोटो ::31सी

आजमगढ़ : अखाड़े की पहलवान व नीबी गांव निवासी महिला पहलवान ज्योति यादव को वह मुकाम नहीं मिल पाया, जिसकी सरकार से उसको आस थी। वह वर्ष 2016 में जूनियर स्टेट बागत कुश्ती 51 किग्रा में दूसरा स्थान पा चुकी है। इसी वर्ष हरियाणा के सिरसा में आयोजित आल इंडिया यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया लेकिन दुर्भाग्यवश उसे कोई मुकाम नहीं मिल पाया। वर्तमान समय में वह डीएवी महाविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा है। चार बहनों में सबसे बड़ी है। इसके पिता कृषि का कार्य करते हैं। किसी तरह परिवार की जीविका चल रही है। सबसे छोटा भाई समीर है। वह पांच में पढ़ता है। कुल मिलाकर ज्योति को बड़ी जिम्मेदारी मिली है। इस कड़े संघर्ष में वह खुद को लोहा मान रही है। अब सरकार सुविधा देगी तो महिला पहलवान देश व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा बिखेर सकती है।

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क्या कहते हैं अखाड़े के संचालक

अखाड़े के संचालक अवधेश यादव की मानें तो दो दर्जन से अधिक महिला व पुरुष पहलवान उनके अखाड़े से निकल चुके हैं। कुछ को नौकरी भी मिल गई है लेकिन संसाधन के अभाव से थोड़ी दिक्कत हो रही हैं। अगर सरकार कुश्ती के लिए प्रोत्साहन करती तो तमाम पहलवान आगे निकल सकते हैं। अब सरकार से उम्मीद जगी है कि खिलाड़ियों के दिन बहुरेंगे।


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