आजमगढ़ के कर्नल निजामुद्दीन ने नेता जी के लिए पीठ पर झेली थीं तीन गोलियां
जागरण संवाददाता मुबारकपुर (आजमगढ़) यूं तो नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जिले से खून का क
जागरण संवाददाता, मुबारकपुर (आजमगढ़): यूं तो नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जिले से खून का कोई रिश्ता नहीं था, लेकिन यहां के कर्नल निजामुद्दीन ने उनके लिए तीन गोलियां पीठ पर जरूर झेली थी। फिरंगियों ने उनके ऊपर जानलेवा हमला कराया था। नेता जी के चालक रहे निजामुद्दीन का छह फरवरी 2017 को इंतकाल हो गया, लेकिन नेता जी से उनके रिश्ते इतने मजबूत थे कि पौत्री राजश्री बोस उनसे मिलने आजमगढ़ आ पहुंची थीं। चुनाव लड़ने से पूर्व नरेंद्र मोदी ने उन्हें वाराणसी में मंच पर बुलाकर सम्मानित किया था।
मुबारकपुर क्षेत्र के ढकवा गांव निवासी कर्नल निजामुद्दीन के सबसे छोटे बेटे मो. अकरम के जेहन में अब्बू के द्वारा बताई गईं एक-एक बातें आज भी ताजा हैं। कहते हैं कि मेरे दादा इमाम अली की उन दिनों सिगापुर में कैंटीन थी। अब्बू उनसे मिलने गए तो ब्रिटिश सेना में नौकरी कर ली। उन दिनों फिरंगियों की लड़ाई जापान से भी चल रही थी। फिरंगियों को इंडियन आर्मी से ज्यादा अपने खच्चरों की चिता थी। उनकी बातें चुभीं तो अब्बू नौकरी छोड़ आजाद हिद फौज में शामिल हो गए। नेता जी सुभाष चंद्र बोस जब फिरंगियों का साथ छोड़ने की वजह जाने तो अब्बू को गले लगा लिए। उसके बाद नेता जी के साथ बर्मा में आ गए तो 1943 से 1845 तक उनके साथ रहे। बर्मा के ही एक जंगल में उनपर हमला हुआ था, जहां अब्बू ढाल बनकर पीठ पर तीन गोलियां झेलते हुए जवाबी फायरिग करते अचेत हो गए थे। होश आया तो डा. उनका इलाज कर रहे थे। उसी दौरान जौहरबारू द्वीप के राजा ने नेता जी को 12 सिलेंडर की गाड़ी दी थी, जिसे अब्बू चलाने लगे थे। वह बर्मा में वर्ष 1943 से 1945 तक उनके साथ रहे थे। बताया कि कागज के अनुसार अब्बू की पैदाइश वर्ष 1900 में हुई थी और 69 वर्ष की उम्र में गांव आए तो यहीं रह गए।