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Azamgarh: फलाहार के साथ मां को अर्पित किया जाता है पूरा आहार, भाेग अर्पित करने के बाद होता है प्रसाद वितरण

मां को भोग अर्पित करने के बाद सभी लोग उसी को प्रसाद स्वरूप साथ में ग्रहण करते हैं। शहर में बंग समाज के लगभग डेढ़ सौ परिवार के लोग रहते हैं और सप्तमी से लेकर नवमी तक पूजा स्थल पर ही एक साथ जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं।

By Shaktisharan PantEdited By: Published: Mon, 03 Oct 2022 03:21 PM (IST)Updated: Tue, 04 Oct 2022 01:33 AM (IST)
Azamgarh: फलाहार के साथ मां को अर्पित किया जाता है पूरा आहार, भाेग अर्पित करने के बाद होता है प्रसाद वितरण
मां को पूरा भोजन अर्पित किया जाता है।

आजमगढ़, जागरण संवाददाता। आम तौर पर नवरात्र में मां को फलाहार का भोग लगाया जाता है, लेकिन बंग सोसायटी के तीन दिवसीय दुर्गा पूजा समारोह में प्रतिमा स्थापना के बाद मां को पूरा भोजन अर्पित किया जाता है। इसमें चार किस्म की दाल मिश्रित खिचड़ी के साथ कोहड़ा-चना और आलू की सब्जी होती है। साथ में टमाटर की चटनी और पापड़ भी होता है। 

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मां को भोग अर्पित करने के बाद सभी लोग उसी को प्रसाद स्वरूप साथ में ग्रहण करते हैं। शहर में बंग समाज के लगभग डेढ़ सौ परिवार के लोग रहते हैं और सप्तमी से लेकर नवमी तक पूजा स्थल पर ही एक साथ जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के बाद अपना पत्तल लोग स्वयं फेंकते हैं। 

मां की कृपा से मिलते हैं तरह-तरह के व्यंजन

माता को अर्पित होने वाले शाम के भोग में फलाहार चढ़ता है। यानी दिन का भोजन सभी लोग माता जी के साथ करते हैं और रात का अपने-अपने घर। सोसायटी के सदस्य अधीर कुमार दत्ता बताते हैं कि मां की ही कृपा से हमें तरह-तरह के व्यंजन मिलते हैं तो फिर उन्हें केवल फल का भोग क्यों लगाया जाए।

कोलकाता से बुलाए जाते हैं कलाकार

उधर सुबह-शाम की पूजा और आरती के दौरान सभी लोग समय से पहुंच जाते हैं और जयकारा के बीच धुनुची डांस करते हैं। पूजा के लिए पुरोहित और ढाकी (विशेष वाद्य यंत्र) बजाने वाले कलाकारों को कोलकाता से बुलाया जाता रहा है, लेकिन इस बार पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में बाढ़ के कारण नहीं बुलाया गया है। 

1956 से हुई पूजा की शुरूआत

आरती के साथ शंख, घंटी लोग बजा रहे हैं। वर्ष 1956 से इस पूजा की शुरुआत हरिऔध कला भवन से हुई, लेकिन उस भवन के ध्वस्त होने के बाद बीते सात वर्षों से इसका आयोजन जाफरपुर में हो रहा है।


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