अवंतिकापुरी के सरोवर का पानी तलहटी की ओर
जासं, रानी की सराय (आजमगढ़) : प्रशासन की अनदेखी के चलते प्राचीन अवंतिकापुरी का सरोवर दुर्द
जासं, रानी की सराय (आजमगढ़) : प्रशासन की अनदेखी के चलते प्राचीन अवंतिकापुरी का सरोवर दुर्दशा का शिकार हो गया हैं। इसकी वजह से इसका अस्तित्व संकट में फंसा हुआ है। जल ही जीवन है कि अवधारणा को आत्मसात कर पूर्वजों ने जल को धार्मिक आस्था से जोड़ कर संरक्षित करने की योजना बनाई थी कि आने वाली पीढ़ी तालाबों को लबालब रखेंगी। वर्तमान पीढ़ी ठीक इसके विपरीत काम कर रही है। यानी जो सपना पूर्वजों ने देखा था वह चूर-चूर हो रहा है।
जिले से लगभग 15 किमी दूर एक गांव है। इसे अवंतिकापुरी नाम से जाना जाता है। यह आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह हजारों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। सैकड़ों वर्ष पूर्व राजा जन्मेजय ने नाग यज्ञ हवनकुंड के रूप में 84 बीघे में सरोवर बनवाया था। मंदिर के टीले से काशी गंगाघाट का दीप दिखाई देता था। हालांकि स्थल की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करने के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा खोदाई भी कराया गया था जिसमें पुरातत्व विभाग को 10वीं शताब्दी के मंदिर नक्काशीदार ईंट, मिट्टी के मनके व चांदी के सिक्के आदि मिले हैं। इस स्थान पर वर्ष में दो बार मेला लगता है। पहला चैत्र रामनवमी और दूसरा कार्तिक पूर्णिमा, जिसमे हजारों लोग इस सरोवर में डुबकी लगाते हैं और मंदिर में पूजन-अर्चन करते हैं। वर्तमान समय में एक तरफ का दायरा अतिक्रमण के चलते सिमटता जा रहा है तो दूसरी तरफ सरोवर का पानी भी तलहटी की ओर जा रहा है। लंबे समय से स्थानीय लोग जनप्रतिनिधियों से इस सरोवर के विकास की मांग कर रहे हैं, लेकिन आश्वासन के सिवाय उन्हें कुछ नहीं मिला। आस्था का केंद्र पौराणिक अवंतिकापुरी सरोवर
आंवक गांव में राजा जन्मेजय द्वारा एक सरोवर बनवाया गया था जो पौराणिक के साथ-साथ जलसंरक्षण की मिसाल बना था। वर्ष में दो बार लोग यहां स्नान के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण व आत्मशांति मिलती है। चैत्र रामनवमी और कार्तिक पूर्णिमा में यहां मेले का भी आयोजन होता है। निर्माण से आज तक लोगों का यह आस्था का केंद्र है। वर्तमान समय में यहां पानी व अतिक्रमण से अव्यवस्था बनी हुई है।