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भगवान शिव के जलाभिषेक की बूंदों से पौधों को दे रहे जीवन

जितेंद्र कुमार औरैया प्रकृति की धरोहर को सहेजने की जिम्मेदारी हर किसी की है। इस कत

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Apr 2021 11:29 PM (IST)Updated: Mon, 19 Apr 2021 11:29 PM (IST)
भगवान शिव के जलाभिषेक की बूंदों से पौधों को दे रहे जीवन
भगवान शिव के जलाभिषेक की बूंदों से पौधों को दे रहे जीवन

जितेंद्र कुमार, औरैया: प्रकृति की धरोहर को सहेजने की जिम्मेदारी हर किसी की है। इस कर्तव्य के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। क्योंकि, शुद्ध हवा, पानी व भोजन कहीं न कहीं प्रकृति से मिलने वाली धरोहरों में ही शामिल है। इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए हरे पेड़-पौधों को जीवित रखना जरूरी है। क्योंकि, इनके बगैर धरोहरों को सहेजना मुश्किल होगा। कुछ ऐसी ही सीख व पाठ गौरैया शिव मंदिर में भगवान शिव के जलाभिषेक की बूंदें पढ़ा रही हैं।

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बदनपुर स्थित गौरैया शिव मंदिर करीब 250 वर्ष पुराना मंदिर है। जल धरा के प्रत्येक कण की ही नहीं बल्कि हर प्राणी की मूलभूत आवश्यकता के बताने का कार्य यह मंदिर कर रहा है। पानी के बिना जीवन संभव नहीं है। इसको सहेजने के अनेक संसाधन आज से ही नहीं पीढि़यों से ही बनते रहे। इस मंदिर में जल संचयन व संरक्षण की जो विरासत मिली है उसे वर्तमान में मंदिर पुजारी लाल जीवन दुबे संभाले हुए हैं। उनका कहना है कि भगवान शिव के अभिषेक की एक-एक बूंद परिसर में उगाए गए पौधों को सिचित करने के काम आ रहा है। जल संरक्षित करने की इस अनूठी पहल देखते ही बनती है। यह प्राचीन मंदिरों में एक है। भिड के कस्बा फूफ निवासी मारवाड़ी परिवार ने निर्माण के समय ही परिसर का जल यहां ही संरक्षित करने की व्यवस्था की थी। मंदिर में एक कुंड का निर्माण किया गया था। जिसके जरिए जल भूगर्भ में संरक्षित होता रहा। लेकिन अब इसके बंद होने पर जलाभिषेक के जल पर किसी का पैर न पड़े। इसे ध्यान में रखकर परिसर में लगाए गए पौधों को सींचने के काम में लाया जा रहा है। मंदिर के सामने व पीछे तालाब भी स्थापित हैं। जिनमें आसपास के क्षेत्र का हजारों लीटर पानी प्रतिवर्ष बारिश का संरक्षित होता है। जिनके सौन्दर्यीकरण का काम भी चल रहा है।

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परिसर में यह वृक्ष वर्षों पुराने

करीब 10 हजार वर्गमीटर में बने गौरैया शिव मंदिर परिसर में लगभग एक सैकड़ा फूल, फल व छायादार पौधे व वृक्ष हैं। लाल जीवन दुबे का कहना है कि पेड़ों में पीपल, बरगद, अशोक सहित हरश्रृंगार, गुड़हल, गुलाब के पौधे हैं। परिसर में पानी की सीमेंट से बनी टंकी है। पानी पीने या मंदिर दर्शन करने आने वाले भक्त जब हाथ-पैर धोते हैं तो पानी नजदीक बनी मेड से होते हुए सीधा पेड़ व पौधों में जाता है। ऐसे में पानी बर्बाद नहीं होता बल्कि वह हरित वातावरण के काम आता है। इसी प्रकार जलाभिषेक का पानी से लेकर पूरे मंदिर परिसर का पानी भी अंडरग्राउंड पाइप की मदद से पेड़-पौधों के लिए 'अमृत' बनता है।


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