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अज्ञात वाहन से कुचलकर दर्जी की मौत, ग्रामीणों ने लगाया जाम

संवादसूत्र अछल्दा साइकिल से घर जा रहे दर्जी को अज्ञात वाहन ने रौंद दिया। इससे उसकी मौके पर

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Jul 2019 11:23 PM (IST)Updated: Mon, 22 Jul 2019 06:19 AM (IST)
अज्ञात वाहन से कुचलकर दर्जी की मौत, ग्रामीणों ने लगाया जाम
अज्ञात वाहन से कुचलकर दर्जी की मौत, ग्रामीणों ने लगाया जाम

संवादसूत्र, अछल्दा: साइकिल से घर जा रहे दर्जी को अज्ञात वाहन ने रौंद दिया। इससे उसकी मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई। सूचना मिलते ही ग्रामीण व परिजन वहां पहुंच गए। उन्होंने महेवा मार्ग पर जाम लगा दिया। सूचना के एक घंटे बाद पुलिस के पहुंचने पर ग्रामीण और आक्रोशित हो उठे। एसडीएम व सीओ ने वहां पहुंचकर ग्रामीणों को समझाकर शांत कराया। करीब तीन घंटे बाद जाम खुला तब आवागमन शुरू हुआ।

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क्षेत्र के गांव चिमकुनी निवासी 38 वर्षीय अशोक कुमार दोहरे पुत्र छक्कीलाल कस्बा के कलक्टरगंज में टेलर की दुकान किए है। शनिवार देर रात वह दुकान बंद करके साइकिल से घर जा रहा था। गांव नगला भगत के सामने चिमकुनी भट्टा के निकट किसी अज्ञात वाहन ने पीछे से टक्कर मारकर उसे रौंद दिया। जिससे अशोक की मौके पर ही मौत हो गई। कुछ देर बाद उधर से निकले ग्रामीणों ने उसे पहचानकर परिजनों को सूचना दी। रोते बिलखते परिजन व तमाम ग्रामीण पहुंचे। उन्होंने 100 नंबर डायल किया। फोन न उठने पर अछल्दा पुलिस को जानकारी दी। करीब एक घंटे तक पुलिस के न पहुंचने पर उत्तेजित ग्रामीणों ने महेवा मार्ग पर जाम लगा दिया। पुलिस पहुंची तो ग्रामीण आक्रोशित हो उठे। ग्रामीण मुआवजे की मांग कर रहे थे। रात में ही एसडीएम रमापति व सीओ लालता प्रसाद पहुंचे और ग्रामीणों को समझाकर शांत किया। एसडीएम ने

मृतक की बड़ी पुत्री प्रियांशी के नाम प्रमाण पत्र बनवाकर आर्थिक सहायता दिलाने का आश्वासन दिया। तब जाकर करीब तीन घंटे बाद ग्रामीणों ने जाम खोला। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।

अब घर में नहीं कोई कमाने वाला

अशोक कुमार दोहरे की मौत के बाद अब घर में कोई कमाने वाला नहीं बचा है। तीन साल पहले अशोक के बड़े बेटे की टीला धसकने से मौत हो गई थी। घर में सभी का रो रोकर बुरा हाल है। उनका दर्द है कि अब परिजनों का भरण पोषण कैसे होगा।

अशोक का परिवार बेहद गरीब है। खेती के लिए जमीन भी नहीं है। दर्जी का काम करके जो कमा लेता था उसी से घर का खर्च चल रहा था। हर रोज वह सुबह साइकिल से अछल्दा जाता था और रात में ही वापस आता था। बड़े बेटे की मौत के बाद वह अपनी दोनों बेटियों को पढ़ा लिखाकर नौकरी लगवाना चाहता था जिससे घर की माली हालत ठीक हो सके। मगर ईश्वर को शायद कुछ और ही मंजूर था। दोनों बेटियां प्रियांसी व दीपांशी का रो रोकर बुरा हाल है। मृतक के पिता नाथूराम भी रो रोकर बेहाल हैं। ग्रामीण परिजनों को ढांढ़स बंधाते रहे।


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