Move to Jagran APP

गरीबी में दम तोड़ रहा भविष्य संवारने सपना

संवाद सूत्र, रुरुगंज : खांटी गांव में गरीबी से लड़ रहे परिवार का युवक जब बांस की फंटियों

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Jun 2018 05:59 PM (IST)Updated: Sat, 16 Jun 2018 05:59 PM (IST)
गरीबी में दम तोड़ रहा भविष्य संवारने सपना
गरीबी में दम तोड़ रहा भविष्य संवारने सपना

संवाद सूत्र, रुरुगंज : खांटी गांव में गरीबी से लड़ रहे परिवार का युवक जब बांस की फंटियों व लकड़ी डंडियों से प्रैक्टिस करते हुए एथलेटिक्स पोलवाल्ट जैसे खेल में प्रदेश स्तर पर स्वर्ण पदक जीता तो जिले का नाम रोशन हुआ। लेकिन इसके बाद भी उसके पंखों को उड़ान नहीं मिल सकी। ओलंपिक खेलों में चीन और दूसरे देशों के खिलाड़ियों को इस खेल में पदक जीतते देख उसने भी देश को पदक दिलाने का सपना देखा लेकिन गरीबी अब उसे पूरा करने से रोक रही है।

loksabha election banner

यह कहानी है अछल्दा ब्लॉक के ग्राम उड़ेलापुर निवासी संजीव दिवाकर की। विद्यालय स्तर पर जिले में अव्वल रहने के बाद उसने प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता में पोलवाल्ट गेम में स्वर्ण पदक जीता। अब राष्ट्रीय और अतंर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेना चाहता है। लेकिन इसके लिए अत्याधुनिक खेल सामग्री के साथ एक कोच की देखरेख में प्रशिक्षण की जरूरत हैं। इसके लिए जितने रुपयों की जरूरत हैं वह उसके परिवार के साम‌र्थ्य से बाहर है। यूं देखा सपना

संजीव को इस गेम का शौक ओलंपिक खेलों को देखकर चढ़ा। उसने इसकी शुरुआत रुरुगंज स्थित जिला पंचायत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पढ़ाई के साथ की। हर बार पोलवाल्ट गेम में अव्वल आते-आते पिछले वर्ष उसने प्रदेश स्तर पर स्वर्ण पदक जीता और आगे चलकर ओलंपिक में भाग लेकर देश के लिये स्वर्ण जीतने की बात दिल में ठान ली।

लेकिन वह जब राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए चयन प्रक्रिया में गया तो वहां उससे फाइबर की स्टिक की मांग की गई, जिसकी कीमत ही लाखों की होती है। उसकी स्टिक को खराब बताकर उसे फाइबर की स्टिक लाने पर ही चयन प्रक्रिया में शामिल किये जाने बात कह दी गई। इससे वह निराश होकर घर वापस आ गया। गरीबी से लड़कर यहां तक पहुंचा संजीव के पिता सोने लाल एक लेंटर डालने वाली मशीन चलाने का काम करते है। ऐसे में तीन भाई, मां सहित पूरे परिवार को दो समय का भोजन ही मुश्किल है। इसके साथ ही पढ़ाई का खर्च भी उन्हीं को उठाना पड़ता है। लेकिन जज्बे से संजीव ने अपनी राह बनानी शुरू की। तीन भाइयों में सबसे बड़े संजीव गांव में लकड़ी और बांस के सहारे प्रैक्टिस की। प्रदेश स्तर की प्रतियोगिता में मौका मिला तो वहां स्वर्ण जीत कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। किट का खर्च सुनकर टूट रही हिम्मत

संजीव का कहना है कि उसका सपना ओलंपिक में भाग लेने का है, लेकिन आगे की राह आसान नहीं दिखती। इसके लिए एक कोच की आवश्यकता है। साथ ही इस खेल के लिए जो सामग्री चाहिए। वह बेहद महंगी है। इसके लिए प्लास्टिक पोलवाल्ट स्टिक ही 50 हजार से एक लाख के बीच की आएगी। इसके अलावा अन्य खर्च और कोच की फीस। परिवार की स्थिति को देखते हुए यह मुश्किल लग रहा है। अधिकारियों से लगा चुका है गुहार

संजीव ने बताया की राष्ट्रीय व ओलंपिक में खेलने के लिये अच्छा अभ्यास, बेहतर संसाधनों की आवश्यकता है। उसने बताया की जब उन्होंने कोच से पैसे न होने की बात की तो उन्होंने अधिकारियों से मिलकर आगे बढ़ने की सलाह दी। इसके लिये वह जिलाधिकारी से मिला भी लेकिन अभी तक किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.