भय और बेबसी की दास्तां कह रहे हालात
भय और बेबसी की दास्तां कह रहे हालात
देवेश सक्सेना, अजीतमल : कोरोना वायरस के भय, लॉकडाउन से रोज की बंद होने वाली कमाई से बढ़ी भूख, कुछ भी न सुझाई देने से आंखों में छाई बेबसी, हाईवे पर से होकर निकलने वाले लोगों में साफ झलकती नजर आ रही है। हालातों ने कर्मभूमि छोड़कर फिर से जन्मभूमि की याद दिला दी। बाहर निकलकर,पैतृक गांव में मां-बाप की सेवा के लिए समय न मिलने की बात कहने वाले, फिर से अपने मां-बाप की शरण मे पहुंचने लगे। हर किसी की आंखों में सिर्फ लाचारी के भाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
कंपनियों और अन्य कामों के बंद हो जाने से, पैदा हुई, लाचारी ने कर्मचारी और दिहाड़ी मजदूरों की आर्थिक खाई पाटकर रख दी है। सबको एक ही रट लगी है कि किसी तरह से घर पहुंचें। दिल्ली में दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालने वाले, तीन सौ किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर जनपद सीमा में पहुंचे। अनंतराम टोल प्लाजा पर कानपुर निवासी भूपेंद् कुमार अपनी दास्तां कहते ही रो पड़ा। बीच रास्ते किसी ने चाय तो किसी ने बिस्कुट दे दिए। प्रशासन ने किसी वाहन पर बैठाया तो उसने भी किराया मांगना शुरू कर दिया। जेब मे नाश्ते के भी पैसे न होने से 10-15 किलोमीटर चलकर वाहन ने उतार दिया। बेटे को कभी वह तो कभी पत्नी निशा गोद में लेकर चलते चलते टोल तक पहुंच गए। पैतृक घर पहुंचकर मां-बाप की शरण मे परिवार पालने की बात कहते हुए उसका गला रूंध आया। यहां मौजूद प्रशासन ने नाश्ता और लंच पैकेट देकर बैठाया और वाहन की व्यवस्था कर कानपुर के लिए रवाना कर दिया। वाहन पर बैठते ही आंखों में आंसू आ गए क्योंकि कष्ट झेलते हुए यहां तक आए थे।