लहलहाता 'किन्नू' भरेगा किसानों की जेब
विवेक सिकरवार, औरैया : परंपरागत खेती के बजाय जिले में अब किन्नू की फसल लहलहा रही है। एक बा
विवेक सिकरवार, औरैया : परंपरागत खेती के बजाय जिले में अब किन्नू की फसल लहलहा रही है। एक बार पौध तैयार होने के बाद कई वर्षो तक मुनाफा देने के चलते यह किसानों की पसंद बन चुका है। उद्यान विभाग भी किन्नू की बागवानी को बढ़ावा दे रहा है।
किन्नू की खेती एक तरह से बागवानी होती है। पौध लगाने के तीसरे साल से ही यह फल देने लगते हैं। करीब दो दशक तक प्रति हेक्टेअर तीन से चार लाख की पैदावार होती है। इसके चलते जिले के अछल्दा व अजीतमल में छोटे क्षेत्र में शुरू की गई खेती अब तकरीबन 80 हेक्टेअर में होने लगी है। इसमें लगभग सौ किसान जुड़े हुए हैं। उद्यान विभाग द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है। जिससे पौध व लगाने का खर्च निकल आता है।
इस तरह मिलती सहायता (प्रति हेक्टेअर)
पहले साल- 12002 रुपये
दूसरे साल- 4550 रुपये
तीसरे साल- 4550 रुपये बाजार का झंझट नहीं
यह फल ज्यादातर दूसरे प्रदेशों से जुड़े बिचौलिए ही खेत मालिक से खरीद लेते हैं। बाजार का झंझट न होने से भी यह फसल किसानों को भा रही है। नेपाल, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पंजाब व हरियाणा में इसकी बेहद मांग है। इन प्रदेशों में किन्नू का बेहतर उत्पादन भी होता है। किन्नू के लिए मुफीद मिंट्टी
किन्नू की खेती के लिए रेतीली-दोमट, चिकनी-दोमट, गहरी चिकनी-दोमट या तेजाबी मिट्टी मुफीद रहती है। इस मिंट्टी में पानी ज्यादा दिन तक नहीं ठहरता। इसके पौध क्षारीय मिट्टी में विकसित नहीं होते। फसल के उचित विकास के लिए मिट्टी का पीएच 5.5-7.5 होना चाहिए। यह है विशेषता
किन्नू औषधीय गुणों से भरपूर एक संकर किस्म का फल है। वर्ष 1915 में एचवी क्रॉसर ने अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में इसे विकसित किया था। फल का छिलका संतरे की तरह न तो बहुत ढीला होता है और न ही माल्टा की तरह बहुत सख्त। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार प्रति सौ ग्राम किन्नू में 97.7 ग्राम जल, 0.2 ग्राम प्रोटीन, 0.1 ग्राम वसा, 1.9 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5 मिग्रा. कैल्शियम, 9 मिग्रा. फास्फोरस, 0.7 ग्राम आयरन, 15 ग्राम कैलोरी, 64-120 मिग्रा. विटामिन-सी के अलावा ऊर्जा व राइवोफ्लोविन पाया जाता है।
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किन्नू के पौधों में तीसरे साल से ही फल लगने लगते हैं। किसानों को चौथे व पांचवें साल से फल तोड़ने को कहा जाता है ताकि पौधे मजबूत हो सकें। लक्ष्य के मुताबिक खेती हर साल कराई जा रही है। कुछ समृद्ध किसान अलग से भी खेती करने में जुट गए हैं। किसानों की आमदनी बढ़ाने में यह फसल मददगार साबित हो रही है।
- अनूप कुमार चतुर्वेदी, जिला उद्यान अधिकारी