वैचारिक सामंजस्य ही सच्ची मित्रता का आधार
जागरण संवाददाता औरैया दोस्ती दो दिलों के बीच का वैचारिक सामंजस्य है। मतभेद मित्रता के स्थाय
जागरण संवाददाता, औरैया : दोस्ती दो दिलों के बीच का वैचारिक सामंजस्य है। मतभेद मित्रता के स्थायी सारथी नहीं बन सकते। जो व्यक्ति केवल अपने पोषण के बारे में सोचता है और जीवों के प्रति निर्दयता हो तो वह कभी अच्छा मित्र नहीं बन सकता। समान विचारधारा भी मित्रभाव को जन्म देती है।
असमय होती दोस्ती की पहचान
बुरे वक्त में साथ निभाने वाला ही इंसान है। दोस्त की पहचान भी असमय में ही होती है। मित्रता की सीख लेनी है तो कृष्ण व सुदामा के मैत्रीभाव से लीजिए। छल, कपट, द्वेष का कहीं स्थान नहीं होता। मित्रता जीवन की एक साधना भी है। बच्ची लाल महविद्यालय के प्राचार्य दिनेश चंद्रा अपने एक संस्मरण में बताते हैं कि एक गांव में तीन मित्र रहते थे। उनके बीच गहरा दोस्ताना भी था। उनकी दिनचर्या एक साथ ही बीतती थी। आना जाना, खेलकूद, पढ़ाई में बेहद सामंजस्य रहता था। धीरे-धीरे तीनों का पारिवारिक जीवन शुरू हुआ। अलग-अलग जगह पर नौकरियों में नियुक्ति हो गई। समस्त सुख सुविधाओं की अभिव्यक्त का अनुभव करते हुए नौकरी का समय बिताकर वापस गांव लौट आए। तीनों के विचारों में परिवर्तन आने लगा। विद्यार्थी जीवन में एक दूसरे के प्रति समर्पित रहने वाले तीनों में बदलाव आ गया कि त्याग, समर्पण की भावना खत्म होती चली गई। वक्त व परिस्थितियां जीवन जीना सिखा देती हैं। आपत्तिकाल में धर्म, मित्र, नारी व धैर्य ही सच्ची मित्रता निभाते हैं। इनकी पहचान भी इसी समय में होती है। गोस्वामी जी ने कहा है कि- धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपतकाल परखिए चारी।। जागरण की पहल समय की मांग है। समाज के लिए प्ररेणास्त्रोत लेख सराहनीय है।
डॉ. दिनेश चंद्रा, प्राचार्य बच्ची लाल महाविद्यालय दोस्त के कारण परीक्षा छूटने से बची
वह व उनके मित्र सोनू बपचन के ही दोस्त थे। हम दोनों एक साथ अध्ययनरत रहकर ज्यादातर समय एक साथ व्यतीत करते थे। मित्र सोनू के पिता सराफा व्यवसायी थे जबकि उसके पिता किसान रहे। कड़ी मेहनत कर परिवार का गुजारा बमुश्किल होता था। परिश्रम पर विश्वास कर मुझे पढ़ाया लिखाया। हमारा मित्र भी बहुत परिश्रमी था। धनवान होने का जरा भी अभिमान उसके अंदर नहीं था। वह हमारी हर संभव आर्थिक मदद करता रहता। एक बार की बात है। हमारी व सोनू की परीक्षाएं चल रही थीं। स्कूल गांव से थोड़ा दूर था। हम दोनों साइकिल से विद्यालय जाते थे। परीक्षा के दिन सोनू थोड़ा जल्दी निकल गया। रास्ते में उसकी साइकिल खराब हो गई। विद्यालय पहुंचने में देरी हो रही थी। इतने में वह भी पहुंच गया। सोनू से उसकी उदासीनता का कारण पूछा और दोनों एक साथ ही परीक्षा देने गए। दोस्त तुम्हारी वजह से ही आज समय से परीक्षा दे पाए। उसने निश्चय कर लिया कि यह दोस्ती पूरे जीवन रहेगी। मित्रता और प्रगाढ़ हो गई। मेरे पिता का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था। चिकित्सकों ने शहर जाकर इलाज कराने की सलाह दी। उसको चिता सताने लगी कि आखिर कैसे इलाज कराएगा। एक लाख रुपये का खर्च कहां से उठाएगा। सोनू को किसी तरह पता चल गया। वह मेरे पास आकर बोला कि तुझे मुझसे भरोसा उठ गया क्या। सोनू ने सारा इलाज का खर्च किया। भला करने वाले पर हमेशा ईश्वर दया करता है।भगवान सोनू जैसा मित्र सभी को दे। उसकी मदद से उच्च शिक्षा ग्रहण कर विधि कालेज में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हूं। जागरण की इस पहल को वह सराहनीय कदम मानते हैं। आज के दौर में युवाओं को लेख से प्रेरणा लेनी चाहिए।
रघुवीर, प्रवक्ता गुलाब सिंह विधि महाविद्यालय आज भी निभा रहीं वर्षो पुरानी दोस्ती
ग्वालियर में शिक्षा दीक्षा के दौरान हमारी मुलाकात रजनी भदौरिया से हुई। पहली मुलाकात गहरी दोस्ती में बदलती चली गई। हम दोनों एक साथ आर्थिक सहयोग व पाठ्य पुस्तकों की खरीदारी आदि में हमेशा सहायता करतीं रहीं। हम दोनों परीक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुईं। हम दोनों ने एक साथ जॉब भी की। राजीव गांधी वोकेशनल इंस्टीट्यूट से हमने जीवन का नया आयाम स्थापित किया। दोनों सर्विस में रहकर भी आज भी उसी मैत्रीभाव को निभा रही हूं। एक दूसरे के सुख-दुख को आत्मसात कर जीवन निर्वाह कर रही हूं। वैचारिक सामंजस्य ही मित्रता का आधार है। मतभेदों से स्थिरता ज्यादा दिनों तक नहीं रहती।
साधना जादौन, शिक्षिका बीटीसी गुलाब सिंह विद्यालय