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अरे! ये तो गोबर है, इसे कैसे फेंक दूं

विवेक सिकरवार, औरैया : 'ये तो गोबर है..' कहावत तो आपने सुनी ही होगी। मगर, स्वास्थ्य के प्रति ि

By JagranEdited By: Published: Fri, 04 Jan 2019 11:08 PM (IST)Updated: Fri, 04 Jan 2019 11:08 PM (IST)
अरे! ये तो गोबर है, इसे कैसे फेंक दूं
अरे! ये तो गोबर है, इसे कैसे फेंक दूं

विवेक सिकरवार, औरैया : 'ये तो गोबर है..' कहावत तो आपने सुनी ही होगी। मगर, स्वास्थ्य के प्रति चिंता के साथ रासायनिक खाद के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए की गई कवायद ने इस कहावत का आशय ही बदल दिया। अब यह कहते सुना जाने लगा है कि 'अरे ये गोबर है, इसे कैसे फेंक दूं..।' जी हां, औरैया के राधाकात चौबे के लिए वाकई गोबर इतना कीमती है कि वह इसे रत्ती भर भी बर्बाद होता नहीं देख सकते। दरअसल, वह गोबर खरीद कर खाद बना रहे हैं और इसकी दूर-दूर तक डिमाड है। दूर-दराज के किसान उनसे वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के गुर भी सीखने आते हैं। इसके लिए राज्यपाल उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।

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राधाकात गोबर से खुद को समृद्ध बनाते हुए लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। वह गोबर से जैविक खाद के रूप में वर्मी कंपोस्ट खाद बनाते हैं। इसके फायदे इतने हैं कि वह 18 जिलों से गोबर खरीदकर भी डिमाड पूरी नहीं कर पाते। वर्मी कंपोस्ट खाद से वह सालाना 25 से 30 लाख रुपये तक कमा लेते हैं। उनकी सफलता को देखते हुए औरैया के अलावा चित्रकूट, बादा, उन्नाव व रायबरेली के किसान उनसे खाद बनाना सीखने आते हैं। कारोबार की अच्छी सोच के लिए उन्हें राज्यपाल सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा उन्हें किसानों के बड़े कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है। राधाकात ने बताया कि उनकी तैयार वर्मी कंपोस्ट खाद झासी, चित्रकूट, कानपुर, लखनऊ व आगरा मंडल में किसान खरीदकर खुली और पैकिंग दोनों में बिक्री करते हैं।

वर्मी कम्पोस्ट खाद से लाभ

- सामान्य कंपोस्टिंग विधि से यह एक तिहाई समय (दो से तीन महीने) में ही तैयार हो जाती है।

- इसमें गोबर की खाद की अपेक्षा नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश तथा अन्य तत्वों की मात्रा अधिक होती है।

- केंचुए से निर्मित खाद के साथ इसे मिलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही कीड़े व खरपतवार की समस्या भी कम हो जाती है।

- इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता में सुधार होता है।

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ऐसे बनती है खाद

सात फीट लंबे, तीन फीट चौड़ाई में एक फीट गहरा गढ्डा खोदें। इसमें 10-15 दिन पुराना गोबर भरकर इसमें केंचुए (करीब 200) छोड़ दें। गोबर के ऊपर सूखी पत्ती व पुआल डाल दें और 20-25 दिन पानी का छिड़काव करें। गढ्डे को सीधी बरसात व तेज धूप से बचाना चाहिए। करीब डेढ़ माह बाद जब गढ्डे में भरी सामग्री पकी हुई चाय के दानों की तरह दिखे तो समझ लें खाद तैयार है। एक नजर आकड़ों पर

- 20 क्विंटल गोबर से 10 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार होती है।

- एक वर्ष में 1000 से 1200 ट्राली होती है तैयार।

- एक ट्राली खाद से 3000 रुपये की होती है बचत

- औसतन वार्षिक कमाई 25 से 30 लाख ऐसे प्रगतिशील किसानों को लगातार विभाग प्रोत्साहित कर रहा है। सामान्य किसानों के जत्थे को इनके खेत पर ले जाकर दिखाया जा रहा है।

- विजय कुमार, उप कृषि निदेशक

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