कानून की पढ़ाई के साथ जल संरक्षण की भी शिक्षा
जागरण संवाददाता औरैया विद्यालयों को भी एक मंदिर की संज्ञा दी जाती है। उसकी वजह है कि दे
जागरण संवाददाता, औरैया: विद्यालयों को भी एक मंदिर की संज्ञा दी जाती है। उसकी वजह है कि देवी देवताओं के मंदिर में पहुंचकर हमें भक्ति व साधना का वरदान मिलता है तो शिक्षा के मंदिर से अनेकानेक जानकारी व प्रकृति की धरोहर को सहेजने की सीख भी मिलती है। विद्यालय से हमें पंचतत्वों को संरक्षित करने का दर्शन भी मिलता है। ऐसी ही मिसाल पेश कर रहा है कि फफूंद रोड पर स्थापित एक लॉ कालेज।
शहर से फफूंद को जाने वाले मार्ग पर वर्ष 2011 में स्थापित ला कालेज में प्रबंध समिति ने जल संरक्षण को निर्माण योजना में ही शामिल कर लिया। करीब 10 हजार वर्ग फुट एरिया का 70 फीसद भाग खुला छोड़ा गया। तीन मंजिला बनी इस इमारत में उपयोग होने के बाद बर्बाद होते जल को एक जगह पर संरक्षित किया गया। बरसात का पानी भी भूगर्भ में संरक्षित करने के लिए खुली एरिया में 10 वाटर स्पॉट बनाए गए हैं। खुले क्षेत्र को हरा भरा रखने, विद्यालय परिवार को शुद्ध वातावरण देने के लिए यहां पर कदंब, चितवन, आम, अशोक, गुलाब, रातरानी, गेंदा, रबर, गुड़हल, तुलसी, नीम, मोरपंख, लेडीपाम, गरवेरा, डेजी, पाइन आदि सैकड़ों पौधे लगाए गए हैं। गमलों में भी कई प्रकार के छाया में तैयार होने वाले सुगंधित छोटे पौधे तैयार किए गए हैं। विधि प्रवक्ता विनीता पांडेय ने बताया कि पूरे विद्यालय में दैनिक उपयोग से बर्बाद होने वाला पानी पौधों को सींचने के काम में लाया जाता है। विद्यालय को हमेशा शुद्ध व स्वच्छ वातावरण मिलता है। प्रबंधक रंजीत सिंह राजावत ने बताया कि कालेज निर्माण के समय ही पानी की एक-एक बूंद को बर्बाद होने से बचाने की कार्ययोजना तैयार कर ली गई। करीब 10 वर्ष से जल संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। करीब 60 हजार लीटर पूरे वर्ष का पानी सहेजा जा रहा है।